लेखक की कलम से
क्या करूंगा…
एक बूंद पानी चाहिए, जीवन आस जगा सके।
क्या करूँगा समंदर को,जो प्यास न बुझा सके।।
एक पत्थर चाहता हूँ, किसी का घर बना सके ।
क्या करूंगा उस पहाड़ को,झोपड़ी न बचा सके।।
एक नाव चाहता हूं, जो भंवर से पार लगा सके।
क्या करूंगा जहाज को,जो तूफां से न बचा सके।।
एक सुई चाहता हूं,जो फटे कपड़े को सील सके।
क्या करूंगा तलवार को,जो जख़्म न मिटा सके।।
एक शीशा चाहता हूं,जो सबको चेहरा दिखा सके।
क्या करूंगा शीशमहल को,आईना न दिखा सके।
एक दीप चाहता हूं जो ,लाखों दीपक जला सके।
क्या करूंगा लाखों दीप,बुझे दीया न जला सके।।
एक इंसान चाहता हूं,जो इस जग को जगा सके।
क्या करूंगा उस भीड़ को,जो खुद न जाग सके।।
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद छत्तीसगढ़