लेखक की कलम से

हत्यारे कौन …

मज़दूरों की गिरती लाशें

उस पर हमसब मौन हैं

तो हत्यारे कौन है

 

चलते पैदल, पड़ते छाले

और सन्नाटे में कौम है

तो हत्यारे कौन है

 

कंधे पर बिटिया लेकर चलता

बेटा पीठ में बांध के चलती

चलती पीछे बूढ़ी मैया

पर सरकारें मौन है

तो हत्यारे कौन है

 

अब तो ये चुप्पी ठीक नहीं

हक दो उनको अब भीख नहीं

कल जब, फिर दिन निकलेगा

मजदूरों का तन पिघलेगा

तुम बेशक अपने महल गढ़ो

पर खुद भी अंदर से लड़ो

किसने ये ईंट लगाई थी

किसने ये महल बनाया था

उसको अंदर महसूस करो

तुम देव नहीं, मानव बनो ।

 

तुम विश्वगुरु बनना चाहो,

पर अपनों को ही मरने दो

ये ठीक नहीं ये ठीक नही।

जागो चीखो आवाज़ दो

ये मजदूर हमारे हैं

सरकारों को मजबूर करो

 

वरना ये पूछा जायेगा

जब वो फिरता दर दर था

जब वो सड़कों पर मरता था

तब क्यों तुम घर बैठे मौन थे

 

उनके हत्यारे कौन थे।

उनके हत्यारे कौन थे।

©मोसम मालवीय, विवेकानंद कॉलोनी, छिंदवाड़ा, मप्र

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