लेखक की कलम से

इस्लामी प्रोपेगैण्डा का सच …

पाकिस्तानी मीडिया सबको मनाने, रिझाने और समझाने में जुटी हुई हैं कि जोसेफ रोबिन बिडेन पाकिस्तान के गहरे सुहृद हैं, आप्त हमदर्द हैं और दृढ़ समर्थक हैं। इमरान खान का बिडेन के साथ भांगड़ा करने वाले पोस्टर अमेरिका में खूब चिपके थे। बिडेन को निशाने—पाकिस्तान (पद्म विभूषण के बराबर) के खिताब से नवाजा गया था।

हालांकि इस पुरानी खबर को एक ही बार टीवी पर गत सप्ताह दर्शाया गया है, क्योंकि तब बिडेन के गले में यह पारितोष डालते हुये तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी दिखते हैं। वे तब सदरे पाकिस्तान थे और इमरान के कट्टर शत्रु है। शहीद बेनजीर भुट्टो के पति हैं। कांउसिल आफ अमेरिकन—इस्लामिक रिलेशंस (काअइरि—सीएआरई) के अगुवा निहद अवाद का दावा है कि हिन्दू भारतीयों के मुकाबले अमरीकी मुस्लिम बिडेन के ज्यादा भरोसेमंद वोटर हैं। मगर उन्होंने वहाबी इस्लामिस्टों, हमास, आईएसआई के सदस्यों को इन अमेरिकी मुसलमानों में शुमार नहीं किया होगा? न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर टॉवर जमीनदोज करने वालों के प्रशंसकों का जिक्र भी नहीं होगा।

सबसे प्रभावी प्रचार पाकिस्तानी मीडिया का यह है कि अमेरिकी नौसेना द्वारा ओसामा बिन लादेन को इस्लामाबाद के निकट (एबोटाबाद) किले में रात के अंधेरे में घुस कर मार डालने के कदम का बिडेन ने खुलकर विरोध किया था। तब वे बरोक ओबामा के उपराष्ट्रपति थे। पाकिस्तान में घुसकर लादेन को मार डालने का यह कदम राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा और सचिव हिलेरी क्लिन्टन ने उठाया था। भावार्थ यह है कि बिडेन पाकिस्तान की भौगोलिक सार्वभौमिकता का सम्मान करते रहे। लादेन पाकिस्तान का माननीय अतिथि था। पाकिस्तान से याराना था।

अत: सर्वप्रथम बिन लादेन वाले पाकिस्तानी प्रोपेगैण्डा का निस्तारण हो। बराक ओबामा के निर्देश पर अमेरिकी की (विश्वविख्यात गुप्तचर संस्था) सेन्ट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) ने जेरोमिनो (Geronimo) नामक हमलावर योजना रची थी कि राजधानी इस्लामाबाद की उपनगरी में छिपे विश्व के क्रूरतम आतंकी सरगना बिन लादेन का खात्मा कर दिया जाय। इस कदम पर जब बराक ओबामा ने अपने सलाहकारों की राय ली तो कतिपय विवरणों के अनुसार उपराष्ट्रपति बिडेन ने सावधानी बरतने की पेशकश की थी। हालांकि पूरा माजरा नौ साल पुराना (अप्रैल 2011 का) है। पर जोय बिडेन बनाम भारतीय मित्र डोनल्ड ट्रंप के आक्रामक और तीखे अभियान के बाद पाकिस्तानी मीडिया ने इसे दोबारा चर्चा में ला दिया।

यथार्थ क्या है? अमेरिकी वोटरों को लुभाने हेतु ट्रम्प ने लादेन वाली बात का अत्यधिक प्रचार किया। पोस्टरों और टीवी माध्यम का व्यापक उपयोग हुआ। चुनाव के दौर में नारे लगते थे कि ”लादेन का प्रत्याशी है बिडेन”, ”लादेन की अपील: बिडेन हो अगला राष्ट्रपति” इत्यादि। पूरी निर्वाचन प्रक्रिया में यह इस्लामी अलकायदा का सरगना छाया रहा था। ”लादेन फार बिडेन” सूत्र गूंजता रहा। जोसेफ बिडेन स्वयं इस अफवाह का खण्डन करते रहे।

मशहूर ”फाक्स न्यूज” को 23 अप्रैल 2012 को बिडेन ने सार्वजनिक तौर पर बताया था कि वे सदैव लादेन को खत्म करने के राष्ट्रपति ओबामा के निर्णय के पक्षधर थे। बिडेन ने कहा भी कि 9/11 के न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड टॉवर के विध्वंस करने तथा तीन हजार लोगों की हत्या का गुनहगार लादेन के समर्थक वे भला कैसे हो सकते हैं? यूं भी पाकिस्तान मीडिया की सिर्फ लंतरानी है कि कोई अमेरिकी खासकर बिडेन जैसे उत्तरदायी राष्ट्रनायक एक हत्यारे नरसंहारक पर हमला करने का विरोध कर सकता है क्या? फिर भी इस्लामाबाद ऐसे प्रोपेगेण्डा बेहिचक करता रहा। श्दू

सरा प्रचार है कि बिडेन पाकिस्तान को उदार इस्लामी समाज मानते है। बिडेन आइरिश कैथोलिक आस्था को मानते है। उनके पूर्वज आयरलैंड से अमेरिका आकर बस गये थे। कोई भी कैथोलिक नौ सदियों तक चले ”क्रूसेड” (धर्मयुद्ध) को साधारणतया नहीं भूल सकता है। मध्ययुग में भयंकर रूप से चले इन जिहादी युद्धों में असंख्य चर्च (इस्ताम्बुल का हाजिया सोफिया चर्च समेत) मस्जिद बना दिये गये थे। तो इस दृष्टिकोण का व्यक्ति पाकिस्तान को कभी उदार इस्लामी राष्ट्र मानेगा

शेष कल …

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली

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