लेखक की कलम से
अमर प्रेम
अमर प्रेम
तुम चांद मत लाना मेरे लिए,
तारे भी कभी मत तोड़ना।
वो जहां है वहीं सुंदर लगते हैं।
दोनों जहां छोड़ आना तुम,
यमुना के तट पर, कदम के नीचे,
कृष्ण बन अधरों में मुरली रख,
गीत गाना प्रेम के।
तेरी राधा बन आऊंगी,
दुनिया के ताने-बाने छोड़कर,श्याम बन जाना मेरे प्रेम में।।
2.
अच्छा लगा सुबह की चाय के साथ
तुम्हारा कहना…
तुम ही तो मेरी मधुबाला हो।
यह सुनकर मैं इतराई इठलाई,
छुईमुई सा शरमाई,
फुर्सत कहां थी खुद को आईने में
निहारने की…
तेरे नैनों ने सब कह डाला।
अच्छा लगता है वक्त से कुछ
पल चुराकर…
तेरा पास आना और कहना…
तुम ही तो मेरी मधुबाला हो।।
ममता गुप्ता टंडवा झारखंड