लेखक की कलम से
ये सियासत है….
ये कौन हवा दे रहा है
अमन के शोलों को
देश का जिस्म जल रहा है
सियासत मजे ले रही है
आम इंसान के सीने से
नफ़रत की आँधी उठ रही है
आओ हर कोम का खुलासा देखने
देश की उड़ रही धज्जियों का
तमाशा देखने आओ
पीढ़ी जो बदल सकती है रुख़
बहती हवाओं का
उसके आक्रोश की
क्षितिज तो जरा देखिए
नफ़रत की जड़ों से उठती
चिंगारियों में जलती युवाओं की
ख़ुमारी पल रही है
दोषारोपण में विवेक खोती
भाषा की अश्लीलता देखिए
उस अश्लीलता की चरम से हो रहा मातृभूमि का बलात्कार देखिए
हर दिशा में मजहबी कोहरा फैला है
हिन्दू के प्रति जो थी कभी
मुस्लिम की दोस्ती जल रही है
आओ कुहासे को छांट लें मिलकर
इस देश की मत्स्यगंधा
सियासती ऋषियों का
शिकार हो रही है
©भावना जे. ठाकर