लेखक की कलम से

अंगदान …

 

दान कर निज अंग का, औरों को जीवन दीजिये।

देह दुर्लभ पा मनुज की, काम पावन कीजिये।।

 

मौत से लड़ते हुये को, जिंदगी मिल जायेगी ।

सच कहूं सबसे बड़ी, ये बंदगी हो जायेगी।

देर तक मत सोचिये, बस आज निर्णय लीजिये।

देह दुर्लभ पा मनुज की, काम पावन कीजिये।।

 

फेफड़े, गुर्दे, यकृत, दिल, आंख यदि उसको मिले ।

जिंदगी जिनकी है अटकी, सिर्फ बस इनके लिये।

जीते -जीते काम, मानवता के हित ये कीजिये।

देह दुर्लभ पा मनुज की, काम पावन कीजिये।।

 

बाल्व दिल के, नस, उतक हड्डी, त्वचा के दीजिये।

कार्निया वा आँत छोटी, पैंक्रियाज दे दीजिये।

ऋषि दधीचि के हैं वंशज, सब समर्पण कीजिये।

देह दुर्लभ पा मनुज की, काम पावन कीजिये।।

 

मृत्यु पाकर भी रहेंगे, आप जीवित कीर्ति में।

आपकी शुभ छवि दिखेगी, उस मनुज की मूर्ति में।

मृत्यु के भी बाद सुंदर, जिंदगी जी लीजिये।

देह दुर्लभ पा मनुज की, काम पावन कीजिये।।

 

दान कर निज अंग का, औरों को जीवन दीजिये।

देह दुर्लभ पा मनुज की, काम पावन कीजिये।।

 

©मृगेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, सिंहपुर, शहडोल, मप्र

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