लेखक की कलम से
ऐसा क्यों होता है …
तुझे ढूंढते जाना
और दिल का डूबते जाना
दिन रात की तरह सुनसान, अंधेरा
लगने लगता है
खामोशी सांय सांय कर
डराती है मुझे…. और
रात तेरी बातों , तेरी यादों
का पिटारा खोल खूब
शोर करने लगती है
इक तेरा मुझे छोड़कर जाना
सब उल्टा पुल्टा कर बदल
देता हैं सब दृश्य…..
फिर इक यही दुख होता है मुझे
कि दिन क्यों निकलता है
और रात क्यों होती है …..
©सीमा गुप्ता, पंचकूला, हरियाणा