लेखक की कलम से

हे नाथ भोले…

गीत

 

हे नाथ भोले अवघड़ दानी,

करूँ वंदना तोरी।

करूँ वंदना तोरीsss

यह विनती सुन लो मोरी।।

हे नाथ भोले….

 

 

मस्तक पर चंद्रमा विराजें,

गले में सर्पों की माला।

हाथ में डम-डम डमरू बाजे,

तन पे है मृग-छाला।

भुत-प्रेत का राजा है तूsss

सुंदर एक अघोरी।।

हे नाथ भोले….

 

भस्मों का श्रृंगार करे,

हैं रूद्र रूप अवतारी।

भांग-धतूरा पीकर हरदम,

मगन रहे त्रिपुरारी।

द्वार पे इनके लगा है मेलाsss

क्या संझा क्या भोरी।।

हे नाथ भोले….

 

 

गौरीपति हेरंब पिता,

दीन-दुःखियों के स्वामी।

तुम हो एक अगोचर शंभू,

मैं मूरख अज्ञानी।

भव सागर से पार लगा दोsss

यही अरजिया मोरी।।

हे नाथ भोले….

 

©प्रेमिश शर्मा, कवर्धा, छत्तीसगढ़                            

Back to top button