लेखक की कलम से
मुक्ति …
मुक्ति शब्द सशक्त होता है!
मानव मन या तन
मुक्ति की प्रबल कामना में
छटपटाता रहता !
किस-किस से मुक्ति?
घर से,परिवार से,
आंगन से,जग से,
संसार से या अपने मन,
मानसिक या दैहिक पटल से,
कहां-कहां से, कितनी बार मुक्ति?
हर संकट से, हर समाधान से,
हर राह से, हर चौराहे से,
हर दृष्टि फलक से, हर आंतरिक द्वंद से,
कहां-कहां से मुक्ति चाहिए?
जब तक प्राणवायु से
पंच इंद्रियां चालित होती रहेंगी!
मुक्ति कहाँ!
जिस मुक्ति की बात
वेद, पुराण, शास्त्र, उपनिषद करते हैं!
वो तो बंधन है, रे पगले!
जीवन का, जीवन से!
मुक्ति तो मुक्त होने पश्चात भी!
शायद संभव होगी?
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता