मातृ अपेक्षा …
मैं तेरी जननी हूँ लाला केवल चाहती तेरा भला।
दुख कष्ट और परेशानी झेल कर केवल चाहती तेरा भला।।
मत उतारो कर्ज तुम मेरा दे दो बस उचित सम्मान।
आदरपूर्वक दो रोटी दो बस चाहिए उचित सम्मान।।
कब मैने तुमसे माँगा है नौ माह के कोख का कर्ज।
बस तुमसे इतनी चाहत भर पूरा करो अपना तुम फर्ज।।
नही चाहिए रात रात का जागना जो दिया उस बचपन मे।
बस केवल इतनी से जरूरत सहारा दे दो रातों में।।
मखमली विस्तर की न मुझे जरूरत याद आज भी गीली खाट।
केवल उसपर स्नेह दिखा दो मखमली हो जाएगी ये भी खाट।।
रेशमी साड़ी की किसे जरूरत तन ढकने को जरूरी केवल स्वछ बस्त्र।
मरे इस स्वछ बस्त्र से नाम बढेगा तेरा वत्स।।
रूखी सुखी खाकर मैंने पान कराया अपना मधुर सुधा।
मेरी तो बस तुमसे चाहत दे दो बस रोटी का टुकडा।।
बस उसमे सम्मान मिला हो और मिला हो आदर भाव।
जननी बनकर मैं बैठी हूँ उढेलूँगी बस तुमपर प्यार ।।
©कमलेश झा, शिवदुर्गा विहार फरीदाबाद