मेरी चाहत…
मैं चाहता हूँ कि,
लोग इस दिव्य रूप का
दर्शन करें,
लेकिन कोशिश आप भी करें,
कहीं आप प्रदर्शन बनकर न रह जाए।
मैं चाहता हूँ कि ,
आजादी आपको भी मिले,
लेकिन कोशिश आप भी करें कि,
कहीं आप
उच्श्रृंखल न बन जाएं।।
मैं चाहता हूँ कि ,
समान अधिकार आपको भी मिले,
लेकिन यह आप तय करें,
कहीं आप अमर्यादित नहीं हो रहे हैं।।
क्योंकि,नर से नारी,
केवल मात्राओं में श्रेष्ठ नहीं ,
बल्कि भावनाओं में भी श्रेष्टतम है।
एक नारी भटके हुए नर को,
सद्मार्ग पर ला सकती है।
लेकिन एक नर में शायद वह गुण नहीं,
जो अपने राह से भटके हुए नारी को,
सही राह पर ला सके।।
अतः हे! नारी शक्तियां,
तुम संस्कृति और सद्व्यवहार बनों।
तुम प्रकृति और संस्कार बनो।।
देवतुल्य हर शक्ति तुझमे हैं,,
वक्त पड़े तो सृजन और,
वक्त पड़े तो स्वयं संहार बनो।।
मर्यादा का वस्त्र हो तन में,
और लज्जा का आभूषण हो।
संस्कारों के पृष्ठभूमि पर,
सुवासित तेरा घर आँगन हो।।
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)