लेखक की कलम से

युवा पीढ़ी और उनके संस्कार ….

गतांक से आगे (भाग २,)

इस आलेख के  पिछले अंक में हम आज के युवाओं के संस्कारों की बात कर रहे थे मेरे विचार से इस समस्या का गहनता से चिंतन करे  तो इसमें पहला अपराध माता पिता या उस अभिभावक का है जिसने बच्चे की परवरिश की है । माता पिता की व्यवसायिक व्यस्तता  , आपसी रिश्तों में संवादहीनता , व्हाट्सएप और फेसबुक और अपनी अन्य घरेलू समस्याओं में उलझे रहना  इन सभी बातों का खमियाजा बच्चे को भुगतना पड़ता है ।माता पिता के दाम्पत्य जीवन की कटुता भी बच्चों के स्वस्थ व्यक्तित्व के निर्माण की प्रक्रिया में बाधा डालती है और संतुलन बिगाड़ती है । ऐसे में  बच्चे या तो प्यार से महरूम रह जाते हैं या फिर प्यार की अति की वजह से माता पिता उनकी जायज़ या नाजायज़ सभी मांगे पूरी करते हैं और उनकी किसी भी गतिविधि में दखल देना आवश्यक नहीं समझते हैं। यही असंतुलन बच्चे के व्यक्तित्व की इमारत को सही आकार नहीं दे पाता है ।

दूसरी तरफ इस मामले में समाज भी जिम्मेदार है। समाज के लिए या किसी संस्था को   आर्थिक योगदान देने वाले लोग  अधिकतर अपना नाम या प्रसिद्धि पाने के लिए ऐसा करते हैं समाज के वंचित या दिग्भ्रमित युवाओं से उनका कोई सरोकार नहीं होता है  इस मामले में कुछ अपवाद भी है कुछ लोग हैं  जो वास्तव में समाज के लिए निःस्वार्थ भाव से  कल्याणकारी योजनाएं चलाते हैं लेकिन ये ऐसा ही है जैसे ऊंट के मुहं में जीरा ।

स्कूल कॉलेज में भी मोटिवेशनल कार्यक्रम होंने चाहिए जिसमें बच्चों के चरित्र में  अच्छे संस्कार , नैतिक शिक्षा और अपने आध्यात्मिक मूल्यों  का निरूपण बहुत आवश्यक है ।

समाज के संपन्न और प्रतिष्ठित वर्ग के लोगों और अभिभावकों को इस समस्या पर ध्यान देने की  आवश्यकता है ।मनोरंजन जगत को भी अच्छी और उद्देश्यपूर्ण फिल्मे बना कर इस दिशा में अपना योगदान देना चाहिए  नई पीढ़ी में अच्छे संस्कार निर्मित हो सके । देश का युवा यदि संस्कारवान  तथा सच्चरित्रवान होगा तो समाज तो उन्नत होगा ही अपना देश भी विकास के नए कीर्तिमान स्थापित कर सकेगा ।

 

©मधुश्री, मुंबई, महाराष्ट्र                                                 

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