लेखक की कलम से

जीना है ….

जिंदा रहने के लिए मुझे जीना है,

हर आंसू मुझे खुद ही पीना है,

हार न मानूंगी मैं,

स्वाभिमान को ना छोडूंगी मैं।

चाहे छलनी को जाए पांव मेरे,

चाहे समस्याओं का पहाड़ मिले,

फिर भी आगे मैं बढ़ रही,

जीना है मुझे जीने दो,

जिंदा कुछ दिन और हमें रहने दो,

कोशिश जो तुम करोगे मुझे तोड़ने की,

तो खुद अस्तित्व अपना मिटा बैठोगे।

जीना है मुझे जीने दो,

हर गम मुझे पीने दो।।

राह में चाहे कांटे आए,

चाहे बिजली चमके और बारिश हो जाए,

फिर भी मैं आस न छोडूंगी,

विष को पीकर भी मैं जी लूंगी।।

जख्म तो दिया है तुमने गहरा,

चाहे लगा दो चारों ओर पहरा।

कदम को अपने ना थकने दूंगी,

अपने आंसू मैं खुद पी लूंगी।

साथ चाहे न दे कोई मेरा,

चाहे हो जाए चारों ओर अंधेरा,

कांटो में भी राह बना कर,

मंजिल अपना मैं हासिल कर लूंगी।

नारी हूं मैं अबला मत समझो,

अपनी नौका की मैं खुद हूं पतवार,

किनारा में अपना खुद सुन लूंगी,

जीना है मुझे जीने दो ।।

 

©डॉ. जानकी झा, कटक, ओडिशा                                  

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