लेखक की कलम से

मन की बात …

 

मन में हमारे कितनी ही बातें

छिपी रह जाती हैं

जो हम चाहकर भी किसी से

कह नही पाते।

 

कहकर होगा भी क्या

कोई समझ नही पाएगा

जिसे भी कहूँ दो दिन बाद

वही ताना देकर जाएगा।

 

इसीलिए हज़ारों बातें दब जाती है

हमारे मन के किसी कोने में

ज़िन्दगी यूँ ही बीत जाती है

छुप छुप कर रोने में।।

 

©मनीषा कर बागची                          

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