लेखक की कलम से
इक इशारे में बहल जाऊंगी ….
ग़ज़ल
जाते जाते तेरे एहसास में ढल जाऊंगी
मैं तेरे सर्द इरादों को बदल जाऊंगी
दर्द बनकर मैं तेरे दिल में रहीँ हूं बरसों
अश्क बन कर तेरी आंखों से निकल जाऊंगी
शिद्दत ए गर्मी ए एहसास से जल जाऊंगी
तेरे साए से मगर दूर निकल जाऊंगी
मुझ को दिखलाओ न तुम चीर के सीना अपना
मैं तो बस इक इशारे में बहल जाऊंगी
तुम तो पत्थर की तरह मुझको समझते रहना
और मैं मोम की मानिद पिघल जाऊंगी ….
©खुशनुमा हयात, बुलंदशहर उत्तर प्रदेश