लेखक की कलम से

तुझसे वाबस्ता थी जिंदगी मेरी….

 

तुझसे वाबस्ता थी जिंदगी मेरी,

पर तू मुझसे वाबस्ता नहीं था।

तू रहगुज़र तो था,

पर रहनुमा नहीं,

तुझसे वाबस्ता थी जिंदगी मेरी,

पर तू मुझसे वाबस्ता नहीं था।।

 

हम चलते रहे दुख में, सुख में संग तेरे,

तू हमसफर तो था,

पर हमनवा नहीं।

तुझसे वाबस्ता थी जिंदगी मेरी,

पर तू मुझसे वाबस्ता नहीं था।।

 

चले हम संग-संग तेरे,

शाना-ब-शाना हम,

तू हमराह तो था,

पर हम-कदम नहीं।

तुझसे वाबस्ता थी जिंदगी मेरी,

पर तू मुझसे वाबस्ता नहीं था।।

 

तेरे लिए खुद को, मिटा डाला हमने,

पर तू एहसास-ए-कमतर था।

तू संग तो था मेरे,

परछाई की तरह,

पर हमसाया नहीं था।

तुझ से वाबस्ता थी जिंदगी मेरी,

पर तू मुझसे वाबस्ता नहीं था।।

 

तू मेरा पैरहन है,

मैं तेरा लिबास हूं,

बिना मेरे तू बेपर्दा है,

तेरे बिना मैं भी बेपर्दा हूं।

तेरा साया तो था सर पर,

पर तेरी छाया नहीं थी।

तुझसे वाबस्ता थी जिंदगी मेरी,

पर तू मुझसे वाबस्ता नहीं,

पर तू मुझसे वाबस्ता नहीं।।

 

©लक्ष्मी कल्याण डमाना, नई दिल्ली        

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