पिता …
पिता तो पिता होता है
घर का सरताज
पिता शब्द अनेक भावों का सम्मिश्रण होता है
कर्म शृंखला से आबद्ध
वक्त-बेवक्त
जीवन का आधार
जीवन की कठोरता को
स्वतःमें संकलित करता
अपने पारिवारिक सदस्यों की ढाल होता है
घर भर के ख्वाब
पूर्ण करने हेतु पूर्ण समर्पित होता है
घर की खपरैल
थाली में स्वादिष्ट व्यंजन
बच्चों की ट्यूशन फीस
नंगे शरीर पर
बहुरंगी पोशाक
जीवन की हर विपदा में
समाधान होता है पिता
सर्वदा
हर सदस्य का सहर्ष हाथ थामे
पिता
विश्वास की नींद होता है
जो हर रात्रि बिस्तर पर चैन की बांसुरी बजा
हर सदस्य को मीठी नींद सुलाता है
पिता
होली, दिवाली, ईद
जैसा पावन पर्व होता है
जीवन के प्रत्येक दिन को
त्योहार समतुल्य बनाता है
सर्वदा स्मरण करवाता है
जीवन के इस पृष्ठ के बाद कहां से शुरू करना है
परिवार की हंसी
और सौभाग्य
ऊपर से कटु, सख्त, जैसे चट्टान
अंदर से करुणानिधान
मजबूती से अपने संसार को कंधे पर जमाये रखता है
नींव का पत्थर होता है ।
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता