लेखक की कलम से

सिंदूर और बिछुए …

लघुकथा

 

रमा! आधुनिक समाज में जीने वाली लड़की, ना जाने कब समाज से दूर गुमशुदगी में जीने लगी पता ही नहीं चला, एक अनजान शहर में अपनों से दूर रमा नौकरी कर रही थी, इस जगह उसकी जान पहचान वाला कोई नहीं था। रोजाना कि तरह रमा बस इस्टंड पर खड़ी थी, कि ….अचानक उसकी नज़र किसी पर पड़ी और वो डर गई, जो पहली बस आईं उसी में चढ़ कर, घर से पहले ही किसी जगह उतर गई। कोई उसका पीछा कर रहा था वो डर रही थी, अचानक किसी ने आवाज दी… रमा..रुको, रमा रुको … रमा चलते चलते रुक गई आंखो में समंदर जितना आंसू सांसो को थामती रमा ने, ! … जब उस आदमी को देखा तो बोली आप ….. मैंने आपको देखा नहीं,….वो जानते थे की रमा उन्हें अनदेखा कर रही है, उन्होंने कहा कोई बात नहीं ! कैसी हो? घर पर सब ठीक हैं! रमा ने कहा – गुरु जी, सब ठीक है।

ये वो गुरुजी थे जिन्होंने कभी रमा को संगीत की शिक्षा दी थी। उन्होंने रमा से कहा, बेटी तुम्हें देख कर खुशी हुई कि तुमने दूसरी शादी कर ली। रमा बोली दूसरी शादी ……?? नहीं ! गुरुजी मैंने कोई शादी नहीं की, बस अपने दम पर जीना सीख गई हूं, और समाज से अकेले लड़ना। जिंदगी में आए एक तूफान ने सब कुछ बदल दिया, जीवन जीने और समाज में रहने का तरीका भी, गुरुजी फिर बोले ..तुम्हारा तो तलाक हुआ था ? तो क्या ?……..फिर से उसी कायर और जल्लाद के साथ !……ऐसा लगा मानो रमा को किसी ने तेज धार कोई चीज चूभा दी हो, रमा ने तुरन्त उत्तर दिया, मै उस इंसान के साथ नहीं रहती, जिसने मेरे बदन पर डंडे तो नहीं मारे पर मेरी आत्मा पर इतनी चोट की, कि रमा घायल हो गई, और फिर उस इंसान से तलाक ले लिया। गुरुजी बोले तो फिर ये सिंदूर और बिछुए ?….. मै कुछ समझा नहीं बेटी! रमा बोली, मां ने कहा था दूसरे शहर में नौकरी करने जा रही हो३५ साल उम्र है, लोग ना जाने किन- किन नज़रों से देखेंगे ; ये सिंदूर मांग में डालती रहना और बिछुए पहने रखना। इस गीदड़ समाज से बचने के यही दो प्रथम शस्त्र हैं,जो पहली नज़र में तुम्हें बचा देंगें, बाकी तुम्हारे आचरण पर सब निर्भर करता है। अपने दर्द को छुपाते हुए, एक लम्बी स्वास भरते हुए, थोड़ी ऊंची आवाज में रमा ने गर्व से कहा …फिर क्यों ना पहनूं!… इन सब चीजों के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाई है, मैंने और मेरे पिताजी ने, “इस सिंदूर और बिछुए के लिए”, अब सोचती हूं सब वसूल कर लूं, हर कीमत जो चुकानी पड़ी मुझे शादी के बाद, बस अब किसी पर यकीन नहीं होता, सारी दुनिया भेड़ियों की तरह मुझे देखे इससे अच्छा है मैं अपने लिए इन्हें पहन कर रखूं।

 इतना कहने के बाद रमा चली गई। गुरुजी ने रमा को मन ही मन प्रणाम कर लिया। अब गुरुजी समझ चुके थे की रमा क्या छुपाने के लिए उनसे भाग रही थी ।…….. रमा आईना है हमारे इस समाज का….. जो अकेली औरत को मांस का टुकड़ा समझता है, उसे हर कोई खा कर अपनी भूख मिटाना चाहता है, अगर ऐसा ना होता तो अनजाने शहर में अपने आपको बचाए रखने के लिए, इज्ज़त के साथ रहने के लिए, रमा को सिंदूर और बिछुए का सहारा न लेना पड़ता।

©अर्चना पांडेय, गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश

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