श्यामा आन बसो वृंदावन में ….
प्रभु आन बसों इन अखियन में,
दर्शन को मीरा तड़प रही।
बचपन से कृष्ण दीवानी थी ,
कान्हा दर्शन की प्यासी थी।
जोगनिया भेष धरा कर के,
वन वन वो मीरा भटक रही ।
प्रभु आन बसो…..
एक तारा लेकर निकल पड़ीं,
भक्ति के सुर वो गान लगीं।
गिरधर की बनी वो जोगनिया
जिसदिन से दिल में ज्योत जगी।
प्रभु आन बसों …….
पग पहन के घुंघरू नाची थीं,
इस जग से नाता तोड़ दिया।
गल पहन के वैजंती माला।
गिरधर से नाता जोड़ लिया।
प्रभु आन बसो….
जहरों के प्याले बने अमृत,
सापों के हार बने (फूल) माला।
वो प्रेम दीवानी नटवर की,
रिश्तों का बंधन तोड़ दिया।
प्रभु आन बसों ……
श्रद्धा, कुसुम करें अर्पित तुमको,
है भाव समर्पण मीरा का ।
तन -मन -धन सब तेरे अर्पण,
चरणों मेँ शीश झुका उनका।
प्रभु आन बसो……
जब श्यमा की उनको शरण मिली,
वो श्यामा के रंग में रंगी मिली।
सुधबुध सब वो विसरा कर के,
भवसागर में वो तरी मिलीं।
प्रभु आन बसो……
©मानसी मित्तल, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश