लेखक की कलम से
मेरे बंधु …
मन की किताब पर
लिपिबद्ध करना
रे बंधु!
मेरे भाव सर्वकल्याणी
मेरे अक्षर भावसंप्रेषित
मेरे शब्द सार्थक
मेरा व्यक्तित्व संवेदनशील
मेरे कर्म सर्वदा हितकारी
मुझे वैसा ही लिखना
जैसा कि
सच में तुम्हारा अन्तर्मन जानता
न्याय कर्ता की भाँति
निष्पक्षरुप से,
मेरी व्याख्या करना
अंतर्मन की किताब पर।
जिसे कभी-कबार
उलट-पुलट कर
पढ़ते समय अश्रुपूरित नेत्र
यदि हो जाए
तो
समझना सच में
तुमने
मुझे पढ़ लिया
मेरे बंधु! मेरे बंधु!
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता