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योगी आदित्यनाथ की दावत

के. विक्रम राव

लखनऊ। संक्रांति पर मुख्यमंत्री आवास में तहरी भोज था। मेजबान थे योगी आदित्यनाथ। चुनिन्दा (फारसी में ”चुनीदा” मायने श्रेष्ठ) अतिथि आए थे। करीब इकतीस। बहुत से वरिष्ठ थे, कई विशिष्ट, कुछ गरिष्ठ मगर सभी शिष्ट। मुझ जैसा कलमकर्मी भी था। गणित की स्नातक-डिग्रीप्राप्त मुख्यमंत्री का हिसाब बरोबर रहा। चर्चा थी चीन से आए विषाणु कोरोना के हमले पर। घंटे भर का संवाद मुक्त माहौल में हुआ। मेरा एक आग्रह था। कोरोना-रोधी टीका लगाने के हरावल दस्ते में स्वास्थ्यकर्मी, प्रौढ़जन आदि के साथ हमारे पत्रकार योद्धा साथियों को भी जोड़ लिया जाए।

राज्य के सर्वोच्च शासकीय प्रवक्ता के नाते मुख्यमंत्री से यह मेरी दूसरी अधिकारिक भेंटवार्ता थी। मिलना तो बहुधा हुआ था। पहली उनके शपथग्रहण (26 मार्च 2017) पर हुई थी। अतः अपने छह दशक के पत्रकारी प्रशिक्षण के अनुसार कुछ विश्लेषण मैंने भी किया कि इस दरम्यान क्या वादा था, कैसा इरादा रहा और क्या हासिल हुआ? चूंकि लम्बा विवरण एक पोथा हो जायेगा, अतः निचोड़ पेश करना ही उपयुक्त होगा।

तबसे आज तक आम वोटर की नजर में तीन विषय गमनीय हैं। अब एनेक्सी भवन, विधान भवन और लोकभवन की फर्शे साफ दिखती थी। पान की पीक से अजंता के चित्रकार की छवि दिखा करती थी। बिलकुल बदरंग। सफाई सहयोग शुल्क (पांच सौ रूपये) वसूलने से ऐसा सुधार हुआ। अगला बदलाव था कि सरकारी परिसर में चहल-पहल खूब दिखने लगी थी। वर्ना शुक्रवार से ही सप्ताहांत के लुत्फ उठाना चालू होता था। जब योगी का डण्डा पड़ा तो हर फोन का ”जवाबी काल” होने लगा। यूपी में इतने दशकों से कर्मचारी तथा अफसर फोन आने पर बाथरूम में, पूजा में, नाश्ता-भोजन टेबुल आदि पर हुआ करते थे। अब कार्य संस्कृति बदलने की प्रतीति तो हो ही गयी। कारण है। जब प्रथम अधिकारी चौकी पर रात बितायेगा। वातानुकूलित यंत्र बंद रहेगा, आधी रात ढले शयन करेगा और ब्रह्ममुहूर्त पर ड्यूटी पर आ जायेगा, तो संदेश नीचे तक जाता है। व्यापक प्रभाव भी होता है।

मेरे लिए ऐसा सब अनजाना कतई नहीं था। क्योंकि ऐसा ही हैदराबाद में सितंबर 1983 में देख चुका था। लखनऊ से मेरा तबादला हुआ था। तेलुगु देशम के मुख्यमंत्री एनटी रामा राव इन्दिरा-कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर तीन चौथाई सीटों का बहुमत पाकर मुख्यमंत्री बने थें। ”टाइम्स आफ इंडिया” के लिए इंटरव्यू लेने का मैंने समय मांगा। उनके प्रधान सलाहकार सांसद पी. उपेन्द्र (बाद में वीपी सिंह काबीना में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे) ने फोन पर बताया कि साढ़े चार बजे जुबिली गार्डेन आ जाईए, सीधे कार्यालय में। मेरा जवाब था कि आंध्र प्रदेश विधानसभा का सत्र तो संध्या पांच बजे तक है। उपेन्द्र बोले एनटी रामाराव भोर में चार बजे से कार्यालय में भेंट शुरू करते हैं। गनीमत है कि योगी शाम को मिलते हैं ब्रह्ममुहूर्त में नहीं। रिपोर्टरों को नींद सुखद बने रहने देतें हैं। एनटी रामाराव भी काशाय वस्त्र पहनते थे। योगीजी की सदृश।

अपने इस शासनकाल के वर्षों में योगी ने कठोर आलोचना देखी और सुनी। एकदा 104 वरिष्ठ आई.ए.एस. तथा विदेश सेवा के उच्च अधिकारियों (पूर्व विदेश सचिव मलयालम-भाषी श्रीमती निरूपमा राव और यूपी के आईएएस अधिकारी वजाहतुल्लाह आदि) ने आरोप लगाया था कि योगीजी ने यूपी में कट्टरता पनपायी है। यूं है तो यह बहस का विषय, पर मुख्यमंत्री का एक वक्तव्य माकूल लगता है। योगीजी बोले, ”उत्तर प्रदेश में आईएएस अफसरों को पिछले मुख्यमंत्रियों ने सर्कस के शेर के मानिन्द बना दिया था।” उन्होंने उन सबको मुक्त कर दिया। बिलकुल छुट्टा। अपनी पहचान लौटा दी।

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