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सरग के भोग-बोरे बासी ….

छत्तीसगढ़ी कहानी

मोहित आज पहिली बार अपन पुरखा के गाँव जावत रहिस हे, मन म नाना किसिम के सवाल आत- जात रिहिस हे,मन ह कल्पना के तरिया म लाहरा मारत रिहिस्,काबर कि,वोहा आज तक नई देखे रिहिस हे कि गाँव कइसने होथे,वोकर जनम-करम ह तो शहर के चकाचौँध म होय रिहिस हावय,हाँ अपन बाबूजी जी ले घेरी-बेरी ये बात ल जरूर सुने रहिस हे कि गाँव ह सरग बरोबर होथे कहिके,आज उहि सरग बरोबर गाँव के दरसन करे बर निकले हे पहिली बार–

शहर के लाम-लाम,अऊ चमचमावत सड़क ल छोड़े के पाछु मोहित के कार ह जस- जस गाँव के कच्चा-पक्का अऊ धुर्रा माटी से सने रसदा म आघु बढ़े ल धरिस् ,मोहित मने-मन म सोचे ल धर लिस का बाबूजी के सरग के रसदा ह अइसने रीथे का? अऊ मने-मन म हाँसे ल धर लिस,, देखत-देखत धान अऊ उन्हारी के लहलहावत फसल ह आगे, जैन ल देख के वोकर मन ह खुस होगे,अवैया-जवैया मनखे मन के रूप,रंग,पहिनावा,ओढ़ावा ल देख के वोकर मन के कौतूहल ह अऊ उछाल मारे ल धर लिस|

लगभग दु घंटा के बाद मोहित के कार ह एक चौगड्डा म पहुँचिस,त वोहा सोच म पड़गिस कि कोन रसदा म जावंव कहिके, कोन ल पता पुछ्व कही के सोचत रिहिस,तभे का देखथे कि दु झन सियान मन ह जेन मन ह लगभग साठ साल के रिहिस होहि,वोमन ह खेत ल कोड़- कोड़ के माटी ल मेड़ म फेकत राहय,मोहित सोच म पड़ गे कि ये उम्मर म अतेक भारी काम कोनो मनखे ह कइसे कर सकत हे,वोकर से रहे नई गिस,अऊ गाँव के पता पूछे के पहिली इही बात ल पूछीस कि बबा हो तुमन ह ये का बुता करत हो?अऊ साठ-पैसठ साल के ये उम्मर मे भी अतका ताकत कहाँ ले,अऊ कैसे मिलथे,थोरिक बताहू का??

मोहित के गोठ ल सुन के बबा मन ह कठल के हाँसे ल धर लिस,फेर थोकिन थिरा के एक झन सियान ह कीहिस,,, ऐसे लागथे तेहा कोनो सहरिया बाबू हरस,जे सेती ऐसने गोठ करत हस,बबा ह कहीथे सुन बाबू हमन ह हमर धरती दाई के कोरा के सेवा बजावत हन जी,खेत के डिपरा ल खन के डबरा ल पाटत हन बाबू,खेत ह बरोबर रही न त अनाज ह घलक बने होही जी,समझे न,,

अऊ तेहा पूछत रेहेस न कि तुन्हर ताकत के का राज हे,, त वोकर तोला सौन्हत दरसन करा देथों,, अतका कहि के वो सियांन मन ह माटी के हडिया के बासी ल देखा के कहीथे बेटा इही बासी ह हमर जिनगी के आधार हरे जी, एकर बर न साग लागे न पान,मिर्चा के बुकनी,या आमा के अथान ह काफी हे,वहू ह नई हे त,फकत गोंदली ह नून मिर्चा के झोझो (रसा) म काम चल जथे,,,

मोहित के आश्चर्य के ठिकाना नई रिहिस,, ये खाना म,, ये बोराय बासी म अतेक मजा? सियान मन कहे ल धर लीस,,, हहो बाबू ये “बोराय बासी” म जेन मजा हे,वो कोनो छप्पन भोग म नई हे,,, बासी के अतेक मान बड़ाई सुन के मोहित ह अपन आप ल रोक नी सकिस अऊ कहीथे- बबा हो का महू ल एको खोंची “बोरे बासी” खाय बर देहू का??

सियान मन के हव काहत देरी रिहिस मोहित ह बटकी म बासी,अऊ चुटकी म नून,आमा के अथान अऊ गोंदलि ल खाय के शुरू करीस ते खाते रहीगे,, सियान मन ह आज सहरिया बाबू के ये रुप ल देख गदगद होगे,मोहित ह बासी ल खाय के बाद, गाँव के पता पूछीस अऊ अपन डगर म धीरे धीरे चल दिस,,,

कार चलावत चलावत मन म सोचे कि बाबू ह मोला बताय रिहिस हे कि,गाँव म सरग हे कहिके,,, फेर” सरग के भोग- बोरे बासी “म कतका जादू हे, आज खाय के बाद पता चलीस,अब तो मेंहा घर म जाके अपन दाई ल मोरो बर रोज दिन” सरग के भोग- बोरे बासी “बनाबे कहिके कहूँ,,,, इही विचार करत,, गाँव के धुर्रा म सनात वोहा अपन गाँव के डगर म आगु बढ़गे ….

 

 

 

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)             

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