रायपुर

छत्तीसगढ़ में अवैध रेत खनन का फलता- फूलता कारोबार और उसका पर्दाफास

अमित जोगी, पूर्व विधायक एवं प्रदेश अध्यक्ष JCC

रेत का कारोबार करने का इससे बेहतर समय शायद कभी नहीं रहा। दुनिया में साल में लगभग 50 खरब टन रेत का उपयोग होता है- एक दशक पहले से लगभग दुगना। पानी के अलावा, पृथ्वी पर अन्य किसी प्राकृतिक संसाधन का इतने वृहद स्तर का खनन और व्यापार नहीं किया जाता है।

मांग एशिया में सबसे ज्यादा बढ़ी है, जहां शहर तेजी से बढ़ रहे हैं (रेत-सीमेंट, डामर और कांच में सबसे बड़ा घटक है)। चीन ने मात्र २ साल में- २०११ से २०१३ के बीच- अमेरिका ने जितना रेत का उपयोग किया पूरी २० वीं सदी में नहीं किया था, उस से कहीं अधिक कर दिया। रेत की खपत में चीन के बाद भारत का दूर से ही सही, दूसरा स्थान है। विकसित राष्ट्रों के समूह OECD को लगता है कि रेत का भारत के निर्माण उद्योग की मांग अगले 40 वर्षों में दोगुनी हो जाएगी। ऐसे में किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आजकल रेत की कीमत आसमान छू रही है।

लेकिन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार, एशियाई लोग रेत का उसके प्राकृतिक रूप से खुद को फिर से भरने की क्षमता और गति से कहीं ज़्यादा तेजी से उपभोग कर रहे हैं। ग्लोबल इनिशिएटिव अगेंस्ट ट्रांसनेशनल ऑर्गनाइज्ड क्राइम (GIATOC) के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में हर साल रेत का लगभग चार-पांचवां हिस्सा (80%) अवैध रूप से निकाला जाता है- और खनन की लागत से 10 गुना ज्यादा कीमत पर दूसरे राज्यों में बेचा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत में कई राज्य सरकारों में मंत्री और उनके साथी- जिनमें छत्तीसगढ़ के क़द्दावर मंत्री और उनके ठेकेदार भाई, एक शराब व्यापारी और एक हाल ही में चुने गए महापौर, जो वर्तमान में मुख्यमंत्री के आँखों के तारे है (पूर्ववर्ती सी॰एम॰ की तरह उन्होंने आकर्षक खनन पोर्टफोलियो को खुद के पास रखा है) का रेत माफिया विशेष रूप से सक्रीय है- के ऊपर अवैध रेत खनन को न रोकने या संरक्षित करने का आरोप लगाया गया है। पिछले साल मुख्यमंत्री के साथ क़रीब से काम रहे एक IAS अधिकारी को खनिज विभाग के प्रशासनिक प्रमुख के पद से कुछ ही घंटों में बाहर निकाल दिया गया था क्योंकि उन्होंने इस अत्यंत शक्तिशाली रेत माफिया के आगे नतमस्तक होने से मना कर दिया था। 

मुंबई के एक चैरिटी, आवाज़ फाउंडेशन की सुमैरा अब्दुलाली कहती हैं, “रेत की इस खिचड़ी में हर किसी की उंगली होती है।” उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा रेत खनन ठेकों (जो कि माइनर मिनरल्ज़ और पंचायती राज अधिनियमों के प्रावधानों के अंतर्गत पूर्व में स्थानीय पंचायतों द्वारा नीलाम किए जाते थे) पर कथित रूप से कंबल प्रतिबंध लगाए जाने और नीलामी के केंद्रीयकरण के बाद भी, लगभग 1,600 वर्ग किलोमीटर भूमि बर्बाद हो गई है, विशेष रूप से महानदी, शिवनाथ, हसदेव, रिहंद, अरपा, इंद्रावती और सोन नदी-घाटों में, जिसके परिणामस्वरूप 23.7 मिलियन डॉलर (1,68,37,35,690 रुपए) का नुकसान हुआ है, जिसमें भूमि उपयोग, मत्स्य पालन, पीने और सिंचाई के पानी को हुई अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय क्षति का सामाजिक-आर्थिक मूल्य शामिल नहीं है। जब सैंया- और भैया- भये कोतवाल, तो जन चेतना के अभाव में स्थिति में कोई ठोस सुधार की उम्मीद कम है। राजनीतिक दलों से कहीं ज़्यादा कारगर भूमिका सिविल सोसायटी की हो सकती है- क्योंकि नेता तो नेता रहेंगे!

यह अन्य दीर्घकालिक और टिकाऊ समाधानों का पता लगाने का समय है। 2018 में महाराष्ट्र ने सड़क निर्माण या मरम्मत करते समय ठेकेदारों को भराव के रूप में प्लास्टिक कचरे का उपयोग करने के लिए नियमों को पारित किया। भले ही छत्तीसगढ़ की रेत के बड़े उपभोक्ता में गिनती नहीं है (हालाँकि देश के बड़े राज्यों में रेत के उत्पादन में हमारी महारत बरकरार है), लेकिन इससे रेत और अवैध रेत खनन की स्थानीय मांग पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। दुनियाभर में वैज्ञानिक कांक्रीट और सीमेंट के विकल्पों के साथ प्रयोग कर रहे हैं। आर्किटेक्ट भी ऐसी सामग्रियों का उपयोग करने के नए तरीके खोजने की कोशिश कर रहे हैं।

SandStories.org के किरण परेरा, जो इस मुद्दे के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देते हैं, कहते हैं कि “बहुत सारे समाधान हैं” यदि केवल सरकारें उन्हें लागू करने की इच्छा खोजेंगी। रेत के अंदर से सिर निकालने का समय आ गया है।

प्रिय पाठक, माँ सरस्वती और छत्तीसगढ़ महतारी के आशीर्वाद से आज से मैं अपनी साप्ताहिक कॉलम-जिसे आप हर सोमवार पढ़ सकेंगे- का शुभारंभ कर रहा हूँ। इस कॉलम के माध्यम से मैं तथ्यात्मक और तार्किक रूप से छत्तीसगढ़ को प्रभावित कर रहे ऐसे मुद्दे- जिन्हें किन्ही कारणों से मुख्यधारा में पर्याप्त स्थान नहीं मिल पाता किंतु जिन पर हमारे समाज का कुछ नहीं करना भी गलत होगा- का विश्लेषण करूँगा। उम्मीद है आपको ये प्रयास पसंद आएगा। हाँ, आपसे विनती है: इस कॉलम का नाम और आने वाली कॉलम के विषय क्या हो सकते हैं, दोनों के संबंध में आपके सतत सुझावों के लिए मैं सदैव आभारी रहूँगा- अमित जोगी

Back to top button