मध्य प्रदेश

श्रद्धा हत्याकांड को लेकर प्रख्यात कथा वाचक पं. प्रदीप मिश्रा ने कही बड़ी बात

पं. प्रदीप मिश्रा बोले- इंदौर की कथा में दक्षिणा के रूप में मिले थे 11 रुपए

इंदौर। धर्म और राजनीति का पुराना साथ है। धर्म में राजनीति और राजनीति में धर्म शुरू से चला आ रहा है। ऐसा नहीं कि राजनेता किसी कथा में नहीं पहुंचते या हमारी कथा में ज्यादा आ रहे हैं। सभी कथाओं में जाते हैं और पूर्व में जो बड़े-बड़े संत और साधु, गुरुजन रहे हैं, उनके चरणों में भी वे जाकर बैठे हैं। दशरथ जी महाराज, जनक महाराज के वक्त भी गुरु उनके साथ में बैठते थे। यह तो एक निरंतरता का भाव है कि कहीं ना कहीं किसी ना किसी रूप में जहां धर्म है, वहां राजनीति रहती है, जहां राजनीति है, वहां धर्म थोड़ा रहता है। यह तो क्रम सदा से चला आ रहा है।

यह बात प्रख्यात कथा वाचक पं. प्रदीप मिश्रा ने बुधवार को इंदौर प्रेस क्लब में मीडिया से रुबरु होते हुए कही। दरअसल, पिछले कुछ दिनों से पं. प्रदीप मिश्रा इंदौर में ही दलाल बाग में कथा कर रहे थे। बुधवार को कथा का समापन हुआ। इसके बाद वे इंदौर प्रेस क्लब में मीडिया से मुखातिब हुए। इस दौरान संत की परिभाषा बताने के साथ ही उन्होंने बताया कि वे काफी वक्त पहले इंदौर के एक घर में भी कथा करके गए थे। उस वक्त उन्हें 11 रुपए दक्षिणा के रूप में प्राप्त हुए थे। इस अवसर पर उनके साथ विधायक संजय शुक्ला भी मौजूद रहे।

वर्तमान में आ रही है कहीं ना कहीं संस्कारों की कमी

वर्तमान में देश के माहौल को लेकर पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि कहीं ना कहीं संस्कारों की कमी आती जा रही है। ऐसा नहीं है कि माता-पिता बच्चों पर ध्यान नहीं देते। अगर माता-पिता बच्चों का ध्यान नहीं देते तो श्रद्धा के टुकड़े कितने हुए ये मालूम नहीं पड़ते। एक पिता के मन में भाव जागृत हुआ कि आखिर मेरी बेटी है कहां, बस जिस पिता को थोड़ा समय निकलने के बाद याद आया कि मेरी बेटी कहां है, वहीं पिता अगर दो या तीन दिन के अंदर पता कर लेते कि मेरी बेटी कहां है तो उनको अपनी श्रद्धा वापस जीवित प्राप्त होती। कहीं ना कहीं हमारे संस्कार या हमारा जो पोषण तत्व है, वह हमें वहां तक नहीं पहुंचने देता।

माता-पिता बच्चों को उस वक्त सिखाना चाहते हैं, जब बच्चा सीखना नहीं चाहता

उन्होंने कहा कि आप इंदौर में ही खोज लीजिए, जितने भी माता-पिता है बच्चों को संस्कार देने में पीछे नहीं हटते हैं। सभी माता-पिता देते हैं, लेकिन वे उस उम्र में सिखाना चाहते हैं, जिस उम्र में बच्चा सीखना ही नहीं चाहता। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब बांस गीला होता है तब उसे नवाओगे तो नव जाएगा और सूखा बांस नवाओगे तो टूट जाएगा। मेरा कहना है कि संस्कारों के बल पर ही हम क्राइम को रोक सकते हैँ।

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