जिन्दगी में जो ना देखा…
जिंदगी में जो ना देखा,
कोरोना में देखा भाई
कोरोना में देखा।
ऊंची अटारियो की खिड़की
से झांकता,बचपन देखा
भाई बचपन देखा।
रोजगार को भागता,लंबी
कतारों में युवा मन देखा
भाई युवा मन देखा।
जिंदगी में जो ना देखा,
कोरोना में देखा भाई
कोरोना में देखा।
खेतों को छोड़ के हाईवे के
मोड़ पे,धरती पुत्रों को सोते
देखा भाई सोते देखा।
बॉर्डर के वीरो को माटी के
शूरवीरो को एकजुट होते,
देखा भाई एकजुट होते देखा।
जिंदगी में जो ना देखा,कोरोना
में देखा भाई कोरोना में देखा।
रेलो की पटरी पर रोटी के
टुकड़े देखे,लाशों के चिथड़े
देखे भाई लाशों के चिथड़े देखे।
गंगा किनारे पर लाशों का,
मरघट देखा भाई
लाशों का मरघट देखा।
जिंदगी में जो ना देखा,
कोरोना में देखा भाई
कोरोना में देखा।
किताबों को छोड़ के
ऑनलाइन मोड पे,
बच्चों को पढ़ते देखा भाई
बच्चों को पढ़ते देखा ।
सोशल मीडिया पे
पर्यावरण संरक्षण देखा,
भाई पर्यावरण संरक्षण देखा।
जिंदगी में जो ना देखा,
कोरोना में देखा भाई
कोरोना में देखा।
चालीस का पेट्रोल सौ होते
देखा भाई सौ होते देखा।
नेशनल टीवी पे मुखिया को
रोते देखा,भाई मुखिया
को रोते देखा।
ट्यूटर की चिड़िया को
पिंजरे में बंद देखा,भाई
पिंजरे में बंद देखा ।
जिंदगी में जो ना देखा,
भाई कोरोना में देखा भाई
कोरोना में देखा।
©कांता मीना, जयपुर, राजस्थान