लेखक की कलम से

आज का इंसान …

माना कि इंसान को समय के साथ चलना चाहिए, बढ़ना चाहिए, पर आज का इंसान चल नहीं रहा, सिर्फ भाग रहा है, दौड़ लगा रहा है, आधुनिकता की दौड़ में, दिखावे की दौड़ में, और इस दौड़ में वो अपना सुकून, अपना अस्तित्व, अपना सब कुछ पीछे छोड़ता चला जा रहा है।

और जब वो दौड़ते दौड़ते थक कर रुकता है, तो तब तक उसके हाथों से बंद मुट्ठीकी रेत की तरह सब कुछ निकल चुका होता है, जो चाह कर भी उसे वापस नहीं पा सकता।

उसी अनेकों बीमारी, चिंताएं चारों तरफ से घेर लेती हैं, और जो साधन, रुपए पैसे उसने जीवन भर कमाए हैं वह सभी इन्हीं सब पर खर्च होना शुरू हो जाते हैं। जीवन का पहिया आकर उसी जगह रुक जाता है, जहां से हम शुरुआत करते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि अब हम वापस उस दौड़ में शामिल नहीं हो पाते।

मेरा मानना है कि जिंदगी में आगे बढ़ना जरूरी है लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा जरूरी है जिंदगी को सुकून और संतुष्टि के साथ हर पल को खुशी के साथ महसूस करते हुए जीना। देखना एक दिन हमारे हिस्से का आसमान हमारी खुशियां हमें स्वयं ही मिल जायेगी।

 

 

©ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश         

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