लेखक की कलम से

आंकड़ा …

पार्षद के चुनाव में दो सौ

विधायक के चुनाव में पांच सौ

थोड़े और बड़े चुनाव में

उसका अंगूठा हजार तक में बिका

 

इस तरह अठारह से साठ की उम्र तक

पहुँचते – पहुँचते

गर जीवित रहता तो

तकरीबन जमा लेता वह बीस हजार रुपये !

 

पर सड़क दुर्घटना में

असमय हुई उसकी मृत्यु

आम आदमी था वह

आंकड़े में बदलना ही था उसको

महामारी का आंकड़ा बनता तो

न मिलता मुआवजा भी

खुशनसीब था सुशासन की चपेट में मरा

और बार – बार मरने के एवज में

एक बार में ही कमा लिए उसने तीस हजार रुपये !

 

जीवन के बनिस्पत कलयुगी तुला में हर बार

मृत्यु का भार दिखा कहीं अधिक !

 

  ©विशाखा मुलमुले, पुणे, महाराष्ट्र   

 

Back to top button