लेखक की कलम से

सियासत के गलियारों का खेल…….

सियासत के गलियारों में अगर यह खेल न खेला जाता।
हिदुस्तान के इस सफेद अंचल पर ये दाग न लगा पता।

आपस का भाई चारा बटकर खून खराबा न होता ।
मुगलों और गोरों का दासता हमको न झेलना पड़ता।।
सौहार्द हमारा बिगाड़ कर आपस का फूट न डाला होता।
हिंदुस्तान के सीने पर बटवारे का खंजर न झेलन पडता ।।

सियासत के गलियारों में अगर यह खेल न खेला जाता।
हिदुस्तान के इस सफेद अंचल पर ये दाग न लगा पता।।

सत्ता के कुर्शी के खातिर अपना ईमान न बेचा होता ।
अखंड भारत के उस संकल्प पर काला दाग न लग पता ।
कश्मीर से कश्मीरी पर घात न कई कर पता।
भारत मे ही रहकर वो आज विस्थापित न कहलाता ।

सियासत के गलियारों में अगर यह खेल न खेला जाता।
हिदुस्तान के इस सफेद अंचल पर ये दाग न लगा पता।

ऊँच नीच का भेद जगाकर समाज को न बांटा होता।
समाज को आज समाजिक खाई का दंश न झेलना होता।
देश तोड़ने की राजनीति पर अगर नकेल कसा जाता।
देश के गद्दारो को फन फैलाने का न मौका मिलता।।

सियासत के गलियारों में अगर यह खेल न खेला जाता।
हिदुस्तान के इस सफेद अंचल पर ये दाग न लगा पता।।

सच मे अगर किसान दुर्दशा को सही से सोचा जाता।
आज फिर वो आत्महत्या जैसा काम कभी न दुहराता।
सच मे उसे सुदृढ बनाने का इच्छा सक्ति मन मे होता।
आज उसे फिर गली गली में अस्तित्व के लिए न लड़ना पड़ता।

सियासत के गलियारों में अगर यह खेल न खेला जाता।
हिदुस्तान के इस सफेद अंचल पर ये दाग न लगा पता।

©कमलेश झा, शिवदुर्गा विहार फरीदाबाद

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