लेखक की कलम से
मैं सिर्फ तुम्हें देखती हूं ….
मैं तुम्हें सिर्फ देखती हूं
चक्षुओं में स्वप्न सा
हृदय में उन्मिलन सा
भाव में स्पंदन सा
बस
मैं तुम्हें
सिर्फ तुम्हें देखती हूं
पतझड़ में प्यार सा
पुष्पों में गुंजार सा
पुष्पित जीवन में मधुमास सा
मैं तुम्हें सिर्फ तुम्हें देखती हूँ
जीवन के दुर्दिन में अभिराम सा
कलुषित जग में नूतन आयाम सा
अनासक्त में आसक्त प्रवाह सा
बस मैं
तुम्हें सिर्फ तुम्हें ही देखती हूँ
परिकल्पना के साकार होने सा
मन-मस्तिष्क में उद्दिप्त जीवंत भाव सा
अचेतन पटल के अतिसूक्ष्म चैतन्य सा
बस मैं सिर्फ तुम्हें ही देखती हूं
जन्म-जन्मांतर के अटूट रिश्तों सा
देह में प्राणतत्व समेटे ब्रह्म सा
सर्वभावों से रचते कुभार सा
मैं नित्य
पावन भावों से सजती भाव सा
मैं सिर्फ,सिर्फ
और सिर्फ तुम्हें ही देखती हूँ ….
@अल्पना सिंह, कोलकाता, शिक्षिका, कवयित्री