लेखक की कलम से
काश जज्बातो को कोई समझ पाता …
जो हमने चाहा वो कभी मिला नहीं,
मगर चाहतो का दौर अभी
जो हमने चाहा वो कभी मिला नहीं,
मगर चाहतो का दौर अभी जारी है।
आगे बढ़े पर बार-बार गिरते गये,
मंजिल की जदोजेहद अभी जारी है।
रिस्तो की खातिर खुद को ही मिटा दिया,
समझौता-ए-हालात अभी जारी है।
काश जज्बातो को कोई समझ पाता,
वो फरिश्ता ढूँढना अभी जारी है।
माना अब उम्र भी सांझ के किनारे है,
पर खुशियों से मुलाकात अभी जारी है।
©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड