स्वस्तिक …
स्वस्तिक बनाकर ज़िन्दगी की खुशियों का आगमन,
नकारात्मक ऊर्जा का सकारात्मक कार्यकलाप,
स्वच्छंद प्रेमसंबंध की प्रतिष्ठा बढ़ने का एहसास होता हैं,
वहीं समस्त सार्थक प्रयास में स्वस्तिक का बहुमूल्य उपयोग होता आया है,
पीढ़ी दर पीढ़ी,
परत दर परत चढ़े रंगों भरे रिश्तों में उतार चढ़ाव दिखते गए,
सदियों पुरानी यादों की लंबी कतारें में ये स्वस्तिक चिन्ह का उतना ही महत्व हैं,
चलता चला आया है,
इस कदर प्रभावित होकर हर कदम पर ख़ुद का मूल उद्देश्य दिखता है,
नई कहानी में स्थापित होता आया है,
हर पूजन में,
हर नए ढंग से जन्म से अंतिम श्वास तक के सफ़र का साथी
स्वस्तिक बनाकर ज़िन्दगी का चलन चलता रहता हैं,
कुछ बुरे के साथ ख़तम हो जाती हैं कर्मो की कहानी,
फिर अंतिम में याद दिलाती है,
जन्मों की निशानी,
कुकर्मों के मोल भाव स्पष्ट करते माफ़ी की ज़ुबानी
स्वस्तिक की कहानी हैं,
रिश्तों की मर्यादा जितनी भी लांघी हो,
पूजा अर्चना जितनी भी करी हो,
दिल दुखा कर कोई चैन की सांस नहीं ले पाते हैं,
बस यही शब्दों का उल्लेख करते है,
कर्मो की किताब में लाखों कमाए हैं,
पर इज्ज़त से इज़्ज़त कमाई हैं
यहीं बुनियाद बताते हैं
विश्वास की ज्योत जगाते हैं
पनपते पिघलते है लाल रंग से बने,
या हल्दी से बाने स्वस्तिक का महत्व जानते है,
मूल्य बहुमूल्य रत्न सा हर पल मे सुख का संदेश देता हैं।
स्वाति नक्षत्र सा एहसास जगाती हैं
गुरु भर्मा,
गुणवान ख़ुशी का आगाज़ दिलाता हैं।
मन पवन सा पड़ चिह्न सा सुख
दुःख का वक्त के साथ एहसास जागता है।
©हर्षिता दावर, नई दिल्ली