लेखक की कलम से

इस रुकावट के लिए खेद नहीं …

कोरोना वायरस से जंग लड़ती समस्त मानव प्रजाति ने अपने सभी आवश्यक समझे जाने वाले क्रिया कलापो को विराम दे दिया है।

वयस्ततम शहर मुंबई भी आज निरवता, शांत महसूस कर रहा है। मानो कई सालों की थकान दूर कर रहा हो। मानव प्रजाति अपने आपको बचाने के लिए इतने व्यस्त शहर को रोक लेगी, यह एक साहसिक कदम है, कमजोरी नहीं।

पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत से लेकर अब तक मानव प्रजाति पर अब तक न जाने कितने जानलेवा प्रहार हुए होंगे, परंतु हर बार मानव जाति उस प्रहार से निखरी ही है, विकास क्रम में हमने यही सीखा है और हर आवश्यकता को अविष्कार में तब्दील किया है। आज हम फिर उसी मोड़ पर खड़े हैं।

हमारी अगली पीढ़ी अपने वैज्ञानिक दृष्टीकोण से, अपने अनुभवों से, अविष्कारों से फिर नया सृजन करेगी। आवश्यकता शायद ब्रम्हांड में नई पृथ्वी खोज ही लेगी।

©वैशाली सोनवलकर, मुंबई

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