लेखक की कलम से
बस एक मां …
देवी नहीं मगर रक्षा करने वाली रक्षिका हूं मैं ।
अन्नपूर्णा नहीं मगर पोषण करने वाली पोषिका हूं मैं।
दुर्गा नहीं मगर दु:खों का नाश करने वाली विनाशिका हूं मैं।
काली नहीं मगर बाधा-विघ्नों की संहारिका हूं मैं।
शक्ति नहीं मगर सदैव ऊर्जा की वाहिका हूं मैं।
लक्ष्मी नहीं मगर सुख-समृद्धि की प्रबंधिका हूं मैं।
सीता नहीं मगर देती नित अग्नि-परीक्षा हूं मैं।
ना मैं अवतारी, ना मैं वरदानी,न सुगंधित पुष्प-वाटिका हूं।।
अपने अस्तित्व को मिटाकर भी सदा मुस्कुराने वाली
जीवनदायिनी, ममतामयी, बस एक ‘माँ’ हू मैं।
©मयूरी जोशी, पारादीप, ओडिशा
परिचय :- डीपीएस पारादीप में शिक्षक, दस वर्षों से अध्यापन के साथ-साथ लेखन व संपादन का अनुभव.