लेखक की कलम से

भारत भूमि के लाल ….

 

जाया भारतभूमि ने दो लालों को

वो गाँधी और लाल बहादुर कहलाये

बन अलौकिक अनुपम विभूति

भारत और विश्व की शान कहलाये ।

 

दो अक्टूबर का यह शुभ दिन आया

विश्व इतिहास में पावन दिवस कहलाया

राष्टपिता बन गाँधी ने खूब नाम कमाया

लाल ने विश्व में भारत को जनवाया ।

 

सत्य अहिंसा के गाँधी थे पुजारी

जनमन के थे गांधी शांति दाता

दीन हीनों के थे गाँधी भाग्य विधाता

बिना तीर के थे गाँधी अस्त्रशस्त्र ।

 

चल के गाँधी ने साँची राह पर

देश के निज गौरव का मान बढाया

दो हजार सात वर्ष को अन्तर्राष्टीय

अहिंसा दिवस के रूप में मनवाया ।

 

शांति चुप रहना ही उनका हथियार था

भटकी जनता को राह दिखाना संस्कार था

बन बच्चों के बापू उनके प्यारे थे

तो मेरे जैसों की आँखों के तारे थे ।

 

लालबहादुर गांधी डग से डग

मिलाकर चला करते थे

एक नहीं हजारों को साथ ले चलते थे

राह दिखाते हुए फिरंगियों को दूर करते ।

 

फिरंगी भी भास गये इस बात को

अन्याय अनीति नही अब चलने वाला

अब तो छोड़ जाना होगा ही कर

हवाले देश गाँधी जी को ही ।

 

गाँधी जी नहीं है आज हमारे बीच

फिर हम रोज कुचल देते है उनकी

आत्मा और कहलाते है नीच

आत्मा है केवल किताबों में बन्द ।

 

अपना कर गाँधी बहादुर का आदर्श

हम देश को बचा सकते है

घात लगाये गिद्ध कौऔं से

देश लुटने से बचा सकते है ।

 

©डॉ मधु त्रिवेदी, आगरा, उत्तरप्रदेश

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