रोटी …
रोटी की कीमत बड़ी है,
इसे कमाने कृषक की भूमिका बड़ी है,
उठ नित भोर वह खेतो को जाता हैं,
कड़ी दुपहरी,कड़क सर्दी और बारिशों में अन्न वह उपजाता हैं,
कितनी मेहनत उसकी देखो,
अन्न सभी को देने में,
भूल अपने सुख के साधन,
लगा क्षुधा बुझाने में।
प्रकृति की भी ये सुंदरता,
हर पल ही कुछ देती हैं,
अन्न,जल जो भी हो,
सुलभ सभी को करती हैं,
ये तो है स्वार्थ की भूख,
कही तो भंडार है,
कही बिलखते बच्चे,
भुखमरी के शिकार हैं।
मानव की जरूरत,
एक अंजुली भर अन्न ही हैं,
दो जून की रोटी से ही,
विकसित तन मन भी हैं,
रोटी है एक जरूरत,
पेट की भूख मिटाने को,
पर एक और जरूरत,
आत्मा की प्यास बुझाने को।
जो जाग गयी आत्मा भी,
यह भूख का दर्द मिट जाएगा,
हर मानव स्वयं में,
फिर करुणा जगायेगा,
दे देगा कोई हर भूखे को,
वो रोटी खाने को,
उठ जाएगा हर कदम फिर,
दूजे की भूख मिटाने को।
मिटाना है जो भूखमरी,
बस आत्मा को जगाना होगा,
हममे से हर एक को सशक्त कदम बढ़ाना होगा,
मिटेगी हर असमानता भी,
हर एक के पास रोटी होगी,
कोई रात फिर न कभी किसी की,
भूख से बिलखती होगी।।
©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी