लेखक की कलम से
मेरा ख़्वाब..
कविता
तमाम क्रूर घटनाओं के मध्य
निर्मित होगा एक कोमल लम्हा
जो खींच लाएगा बार-बार
क्रूरता के कवच में छिपे मनुष्यत्व को
धुँआ उगलती बंदूकों की नालों पर
साइलेंसर बन चिपक जाएगा अहिंसक भाव
ट्रिगर दबाती उंगलियाँ झिझकेंगी
और काँटों से बचा कर तोड़ लेंगी सुर्ख़ गुलाब
मिलावटी नारेबाजी के बीच पैठेगा न्याय-हंस
शत्रुता और मित्रता की खरी पहचान होगी
स्वार्थ के उल्लू बदल लेंगे अपना बसेरा
नीम की छाती पर नही उगेंगे पीपल-बरगद
मैं जानती हूँ कि यह पढ़कर मुस्करा रहे हैं आप
यह सच है कि, भारत की नियति है लुटना
पर गैरों से लुटे घर फिर आबाद हो जाते हैं
घर के चोरों से लुटा घर फिर नही बसता
खुली आँखों से देखे गए सपने सच नही होते
यह भी कि,
असंभव है तमाम मानसिकताओं का बदल जाना
फिर भी मैं पाल रही हूँ सपना
आशाओं का ठूँठ एक दिन फिर से हरियाएगा ।
– सरस्वती मिश्र