लेखक की कलम से

कसम …

 

कसम का क्या मोल  है

ताकत , भय इसका रहता है ।

कसम किसी को कोई भी दे दे

विश्वास उसी पर  गहरा होता है ।

कसम तोड़ दे यदि कोई भी

उस पर विश्वास नहीं रहता है ।

विश्वास उसी पर ही रहता है

कसम पर जो कायम रहता है ।

कसमे ,वादे अनमोल बहुत है

मानो तो कसम अनमोल है।

रखकर कसम दिलाई जाती है।

कसम आखिर क्या

जिस पर विश्वास किया जाता है ।

पढ़ा लिखा या अनपढ़ हो

कसम को सभी कोई मानता है ।

दो प्रेमी आपस में मिलकर

बस कसम प्यार की खाते हैं ।

जीवन में साथ जियेगे साथ मरेंगे

साथ निभाने की कसम खाते हैं ।

दो दोस्त जब दोस्ती करते हैं

जान न्योछावर कर देते हैं ।

दोस्ती की कसम के खातिर

आपस में मिलकर रहते हैं ।

कसम शब्द में आखिर क्या है

जिसको सभी निभाते हैं ।

खाई कसम को नहीं छोड़ते

हरदम उसका मान रखते हैं ।

कसम ना झूठी खाना कभी

विश्वास के धागे दिल से जुड़ते

इन्हे ना आजमाना, दिल टूटे

रब रूठे, किसी का दिल ना दुखाना

कसम का मान अनमोल

सोच समझ कर खाना ।

 

©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा                         

Back to top button