लेखक की कलम से
कौन समझेगा …??.
अश्क-ऐ समन्दर के खारे पानी को
ना समझेगा …??.
कोई दर्द-ऐ जिगर की इस रवानी को
चन्द अल्फाज़ मुकम्मल ही नहीं हैं
बयां कर सकें जो तेरी खामोश कहानी को
कौन समझेगा …??.
कि कितना मुश्किल है….
दूसरों की कसौटी पे खुद को यूं कसते जाना
रीति-रिवाजों की दलदल में यूं धसते जाना
अन्तस की वो पीड़ा, वो छटपटाहट छिपाकर
अपने ही हालात पे बस खुद हंसते जाना
कोई नहीं समझेगा तेरी पीड़ा…
तुझे स्वयं ही उठाना है ये बीड़ा
अपने सम्मान की खातिर स्वयं ही लड़ना है
पांव में छाले सही, फिर भी आगे बढ़ना है
कौन है सृष्टि में जो तेरे कर्ज से बचा है
तूने तो सृष्टि रचियता को भी रचा है….
©अनुपम अहलावत, सेक्टर-48 नोएडा
परिचय- समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर, राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख दैनिक अखबारों व पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रचनाओं का प्रकाशन।