लेखक की कलम से

इंदिरा हारीं थीं शेरे गढ़वाल से …

हेमवती नन्दन बहुगुणा का जीता हुआ गढ़वाल संसदीय उपचुनाव आज ही के दिन (21 जून 1981) पलट दिया गया था। ठीक चार दशक हुए। हालांकि उसी दौर में अमेठी से राजीव गांधी निर्वाचित घोषित हो गये थे। दोनों उपचुनावों में इन्दिरा गांधी का असर दिखा था। उनके सत्ता में लौटे साल भर ही हुआ था। उत्तर प्रदेश (तब अविभाजित था) के इन दोनों मतदानों पर दुनिया की नजर टिकी थी। हवाई दुर्घटना में संजय गांधी की मौत से अमेठी की सीट रिक्त हो गयी थी। सरकारी एयरलाइन्स के पाइलट पद को छोड़ कर राजीव गांधी एक दिन पूर्व ही कांग्रेस में भर्ती हो गये थे। प्रत्याशी बन गये थे।

हालांकि इन्दिरा गांधी के लिये ये दोनों चुनाव जीतना अत्यावश्यक था। अपने वंश के नये उत्तराधिकारी को नामित करना था। अपने घोर शत्रु को गढ़वाल में परास्त करना था। बहुगुणाजी कांग्रेस से बाहर हो गये थे। उनका प्रतिद्वंदी थे चन्दमोहन सिंह नेगी। दोनों ”भांजों” (राजीव और संजय) ने बहुगुणाजी को पार्टी में लाकर प्रधान सचिव नियुक्त कराया था, तो अपमानित भी उतनी ही शीघ्रता से कराया। कार्यभार संभालने पर लखनऊ आकर बहुगुणाजी ने प्रदेश कांग्रेस पार्टी कार्यालय जाने के लिये फोन पर पूछा था कि ”कौन वहां मिलेंगे?” उन्होंने अपना नाम भी बताया कि ”नवनियुक्त प्रधान सचिव हूं।” मगर पार्टी कार्यालय से सवाल था : ”कौन बहुगुणा?” सचिव नेगी की आवाज थी। बस फिर रिश्ते टूट गये। स्पष्ट था कि सातवीं लोकसभा (1980) में अपार बहुमत पाकर इंदिरा गांधी पुराने शत्रुओं को निपटाना चाहतीं थीं।

इसी बीच गढ़वाल उपचुनाव आ गया। बहुगुणाजी ने इंदिरा—कांग्रेस से मुठभेड़ किया। फिजां ऐसी थी कि बहुगुणाजी कितने अधिक वोटों से नेगी को शिकस्त देंगे, यहीं आम सवाल था। प्रधानमंत्री का हुकुम था कि ”बागी” बहुगुणा को कुचल दिया जाये। हर हालत में, हर कीमत पर। मौका भी माकूल था। उत्तर प्रदेश में इंदिरा गांधी के ”तीसरे पुत्र” विश्वनाथ प्रताप सिंह मुख्यमंत्री थे। उधर पड़ोसी हरियाणा में चिरंतन दलबदलू कांग्रेसी भजन लाल मुख्यमंत्री थे। फिर क्या था ? हरियाणा की जाट पुलिस गढ़वाल में तैनात की गयी। विश्वनाथ प्रताप सिंह भी प्रयागराज के पुराने कर्ज चुकाने में जुटे थे। गढ़वाल में बहुगुणा के साथ जनता थी। पहली बार वोटर बनाम प्रत्याशी के बीच चयन करना था। दूसरे, इस मतदान में हर हथकण्डा इंदिरा—कांग्रेस ने अपनाया बहुगुणा का बिस्तर गोल करने के लिये।

तभी दैवी कृपा थी कि एक स्वनामधन्य, बहुत ही नैतिक और ईमानदार तथा कुशल मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त हुए थे। श्यामलाल शकधर। सन 1941 के इंडियन सिविल सेवा के अधिकारी थे। उनके मुख्य चुनाव आयुक्त के समय से ही ईवीएम का प्रचलन भी शुरु हुआ था। चूंकि शकधर कश्मीरी थे अत: विपक्ष पसोपेश में था। इंदिरा गांधी का फरमान तब तक जारी हो गया था कि बहुगुणा लोकसभा की डेहरी तक न पहुंच पाये। पर वाह ! क्या “ईमानदारी” थी! मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने गढ़वाल के मतदान को ही निरस्त कर दिया। कारण बताया कि बिना चुनाव आयोग की अनुमति के हरियाणा के सिपाही गढ़वाल की पहाड़ियों पर तैनात हो गये थे। मानो सब घरेलू मामला हो। बहुगुणाजी का आरोप भी था कि निर्वाचन के हर नियम की धज्जियां उड़ाकर पांच कांग्रेस—शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी प्रचार में ओवरटाइम करने में जुटे थे। स्वयं इंदिरा गांधी सारी मर्यादाओं तथा परिपाटियों को चकनाचूर कर पहाड़ के गांव—गांव में अभियान कर रहीं थीं।

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©के. विक्रम राव, नई दिल्ली                                          

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