लेखक की कलम से

जीवन आसान हो जाता है जब पत्नी को समझें मित्र …

कार्येषु दासी, करणेषु मंत्री, भोज्येषु माता, शयनेषु रम्भा, धर्मानुकूला क्षमया धरित्री, भार्या च षाड्गुण्यवतीह दुर्लभा।

कहा जाता है ये सारे गुण एक ही स्त्री में पाया जाना कठिन है पर अगर दिल से निभाया जाएं तो नामुमकिन भी नहीं।

दांपत्य जीवन का सही आनंद लेना है तो सप्तपदी के सातवें वचन का अक्षरशः पालन करो “सप्तमे सखा भव:”

पति-पत्नी बाद में बनें पहले एक दूसरे के अच्छे मित्र बनें जब रिश्ते में मित्र भाव आता है तो एक दूसरे को समझना बहुत आसान हो जाता है, जिसके साथ पूरा जीवन बिताना है उससे दोस्ती रखें।


जैसे सच्चे दोस्त एक दूसरे की किसी बात का बुरा नहीं मानते हर कमी खूबी के साथ रिश्ते को अपनाते हैं वैसे ही अगर दांपत्य जीवन में भी ये बात अपना ले तो जीवन बहुत आसान हो जाता है.!

और हाँ मनुष्य सहज स्वभाव के चलते पति-पत्नी में अगर कभी झगडा हो तो एक दूसरे के प्रति पीठ करके कभी मत सोए, एक दूसरे के चेहरे को देखते हुए उसी तरफ़ मुँह करके सोएँ। साहब आपकी दूसरी सुबह इसी सूरज को देखते हुए खिलनी है, दूरी रिश्ते को दूर ले जाती है। नज़दीकीयाँ प्यार जगाती है। अलग होने की बहुत वजह होती है पर साथ रहने की सिर्फ़ एक वजह प्यार होती है, तो बस एक दूसरे के प्रति कभी लापरवाह मत बनिए, थोडी सी लापरवाही अकस्मात को जन्म देती है और रिश्ते में एक बार पड़ी दरार को भरने में एक उम्र भी कम पड़ती है। बचपन में पहला निवाला खिलाने वाले ओर झूला झूलाने वाले हाथ बेशक अनमोल और महान थे, हैं और रहेंगे पर एक बँधन जुड़ता है सात फेरों संग हस्त मिलाप के समय, उस वक्त थामा हुआ हाथ भी बेशकीमती है।

उम्र के आख़री पड़ाव में वही हाथ एक-दूसरे को सहारा देते हैं और आख़री निवाला भी वही खिलाते हैं, इस आदर्श और महान रिश्ते से बढ़कर कुछ नहीं। कद्र, प्यार और भरोसा नींव है उस रिश्ते की तो अपने जीवन साथी से इतना ही कहिए तुमसे बना मेरा जीवन सुंदर सपन सलोना।

“सुनो कभी मैं कुछ कह ना पाऊँ तो तुम समझ लेना, ओर कभी मैं समझ ना पाऊँ तो तुम कह देना”

उस हाथ को शिद्दत के साथ थामे रहना कभी वो ड़गमगाए तो तुम थामना,

कभी तुम लड़खड़ाओगे तो वो गिरने ना देगा।

पति-पत्नी पूरक हैं एक दूसरे के,

परिणय को परिभाषित करते उम्र भर साथ निभाते हैं, स्त्री का आंचल ज़िंदगी की आपाधापी से निढ़ाल पुरुष का सहारा है, तो पुरुष का काँधा जिम्मेदारीयों के बोझ से थकी हारी स्त्री का सुकून है, अग्नि को साक्षी मानकर जब दो हथेलियाँ जुड़ती है एक भरोसे के साथ तो दिल को दिल से एक एसा धागा जोड़ता है की जन्मों जन्म का नाता जुड़ जाता है।

दो अनदेखे अन्जाने आंशियाँ बना लेते हैं अपने साथी की हथेली पर क्यूँकि ये बंधन तो प्यार का बंधन है।

©भावना जे. ठाकर

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