लेखक की कलम से

सुहाना सफ़र …

 

शादी और सगाई के दरम्यान का समय एक सुहाना सफ़र होता है , इस समय की यादें सदा दिल मे घर कर जाती है। अक्सर ये सुहाना सफ़र, ये समाँ हमे गुदगुदा जाता है।

………….याद आ गया आज फिर वो जमाना, वो दिलकश लम्हे, वो दिलकश फ़साना, वो पहली बार हमारा मिलना, और तुम्हारा मुझे देख कर मुस्कराना, और मेरा तुम्हें देख कर नज़रे झुकाना।

वो तुम्हारे हाथ का मेरे हाथ से टकराना, और हमारे बीच इक नया (अनजाना सा) रिश्ता बन जाना और फिर बात का सगाई तक पहुंच जाना।

वो सगाई के वक्त तुम्हारे हाथों का मेरे हाथों को छूने का सबब बनना। वो तुम्हारा धीमे से मेरा हाथ दबाना और कनखियों से मुझे बार-बार निहारना।

याद आ रहा है वो तुम्हें जाते समय अटारी से छुप के देखना और खत लिखने का इशारा समझाना। फिर रोज़ तुम्हारे ख़त का इन्तज़ार करना, ख़त ना मिलने पर उदास हो जाना। उदास मन से तुम्हारी तस्वीर से बातें करना।

वो ख़तों में अपने दिलों का हाल बयां करना, और आने वाले कल के सपने बुनना।

कितना हसीं समां था वो दूर रह कर भी हमें इक दूजे की नज़दिकियों का एहसास होना ….याद आया है फिर आज वो गुज़रा जमाना ……..वो सफ़र सुहाना………

©प्रेम बजाज, यमुनानगर

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