लेखक की कलम से

युग परिवर्तन ….

 

इस युग में

जी हाँ इस युग में

मन हुआ प्रश्न करने

उस युग के सुदामा से

भई ऐसा क्या विशेष करम

किया तुमने ?

जो मिल गया मित्र तुम्हें

कान्हा बाँसुरी वाला ,

द्वारिकाधीश जैसा

 

मित्र सुदामा

हमें भी तो बतलाओ

अपना वह राज़

हम भी आज़माएँ

वरना आज के इस युग में

मित्रता क्या

नाते रिश्ते भी

मोल भाव करके

नाप तौल कर

कितना लाभ

कितना नुक़सान

साफ़ साफ़ हिसाब

करते बहीखाते के

हर पन्ने को जाँचने परखने के बाद

तय किया जाता है ।

लोग ना जाने क्या

समझाना चाहते हैं

शायद यही कि

मित्रता ही नहीं

बल्कि

काग़ज़ के दस्तावेज़ों की तरह रिश्ते भी बदल जाते हैं

कौन किस पारी का है

या यूँ कहें

जिसे कभी अपनाया ना हो

स्वार्थ के लिए अपनी पारी में शामिल किया जाता है । बात ख़ुशी की है कि

इसी बहाने किसी को

अपनाया तो गया है ।

 

©सावित्री चौधरी, ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश   

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