लेखक की कलम से

तर्कपूर्ण व्यक्तित्व से संघ के शिखर तक ऐसे पहुंचे कौशल किशोर …

14 सितम्बर जन्मदिन पर विशेष

 

किसी भी बालक के जीवन में उसकी मां का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। संघ के वरिष्ठ प्रचारक कौशल किशोर के साथ यह बात कुछ दूसरी तरह से घटित हुई। उनका जन्म 14 सितम्बर, 1928 को रायबरेली (उ.प्र.) में हुआ था। वहां के जिलाधिकारी के पेशकार बाबू श्रीलाल सहाय निःसंतान थे। संयोग से उनके रिश्तेदारी में एक महिला बालक को जन्म देने के तुरंत बाद चल बसी। इस पर श्रीलाल उसे अपने घर ले आये। उनकी पत्नी श्रीमती दिलराजी ने उस बालक को अपना दूध पिलाकर पाला; पर छह वर्ष बाद वे भी परलोक सिधार गयीं। इस पर श्रीलाल ने पुनर्विवाह किया और फिर बालक कौशल किशोर का पालन तीसरी मां के सान्निध्य में हुआ।

संघ से उनका सम्पर्क बाल्यकाल में ही हो गया था। 1946 में कक्षा 12 उत्तीर्ण कर वे प्रचारक बन गये। सर्वप्रथम उन्हें रायबरेली की लालगंज तहसील में भेजा गया। 1948 में संघ पर प्रतिबन्ध के समय अनेक प्रचारक वापस लौट गये; पर कौशल डटे रहे। प्रतिबन्ध समाप्ति के बाद उन्हें प्रतापगढ़ में जिला प्रचारक बनाया गया। इसके बाद वे हरदोई, मेरठ आदि में प्रचारक रहे। मेरठ में रहते समय उन्होंने बी.ए. और एम.ए. की परीक्षा भी उत्तीर्ण की।

उ.प्र. में अनेक स्थानों पर जिला, विभाग प्रचारक आदि कार्य करने के बाद 1971 में उन्हें उ.प्र. जनसंघ का संगठन मंत्री बनाया गया। 1975 में आपातकाल लगने के बाद वे भी भूमिगत रहकर जन जागरण के काम में लगे रहे। उन दिनों वे बुलन्दशहर जिले में पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। उनकी जेब में कई छोटे-छोटे कागजों पर आवश्यक पते और फोन नंबर लिखे थे। कौशल ने समय पाकर उन सब कागजों को चुपचाप खा लिया। बाद में जब तलाशी हुई, तो पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा। इस पर भी उन्हें मीसा में बंद कर दिया, जहां से वे प्रतिबन्ध और आपातकाल की समाप्ति के बाद ही छूट सके।

आपातकाल के बाद सभी विपक्षी दलों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया। कौशल उ.प्र. में इसके महामंत्री बनाये गये; पर यह अनेक स्वार्थी नेताओं और दलों का कुनबा था। वहां संघ के प्रचारक के लिए भला क्या जगह हो सकती थी ? 1980 में यह कुनबा टूट गया और इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में आ गयीं। कौशल का मन भी इस उठापटक से ऊब चुका था। अतः उन्होंने फिर से संघ का काम करने की इच्छा व्यक्त की।

इस पर उन्हें जम्मू संभाग, फिर दिल्ली सह प्रांत प्रचारक, प्रांत प्रचारक और फिर अ.भा.सह बौद्धिक प्रमुख बनाया गया। उन्हीं दिनों संघ में संपर्क विभाग का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य ऐसे लोगों को संघ से जोड़ना था, जो भले ही शाखा न जाते हों; पर चरित्रवान और प्रभावी होने के नाते समाज में उनकी अच्छी प्रतिष्ठा है। कौशल को इस विभाग का काम दिया गया। पूरे देश में व्यापक प्रवास कर उन्होंने इसका सुदृढ़ तंत्र खड़ा किया।

कौशल की सबसे बड़ी विशेषता उनकी वार्तालाप शैली थी। भाषण और बैठक हो या व्यक्तिगत वार्ता; वे बात को बहुत तर्क एवं तथ्यपूर्ण ढंग से रखते थे। इससे नये व्यक्ति और कार्यकर्ता बहुत प्रभावित होते थे। लगातार प्रवास व परिश्रम के कारण जब वे अनेेक रोगों से पीड़ित हो गये, तो 1998 में उन्हें दायित्व से मुक्त कर दिया गया।

27 अगस्त, 2003 को हुए भीषण मस्तिष्क आघात से लखनऊ के अस्पताल में उनका देहांत हुआ। उनकी माता की इच्छानुसार उनका अंतिम संस्कार रायबरेली के निकट डलमऊ के गंगाघाट पर किया गया।

 

@संकलन- प्रकाशचंद्र शर्मा

Back to top button