लेखक की कलम से

बेटी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं…

क्यों लोग कहते हैं??

बेटियां होती हैं पराई,

क्या आपको नहीं लगता??

वो दोनों घर की होती हैं परछाई।

 

क्या बेटे को जन्म देने में पीड़ा होती कम??

या पालन पोषण में खर्चा होता है कम??

फिर क्यों मुझको पराया धन कहकर

धिक्कारते हैं लोग??

 

क्यों बेटी को समझा जाता है कमजोर,???

आप ही लोग तो बेटी कहकर कर देते हैं कमजोर।

 

यदि बेटे को हौंसला दे सकते हैं लोग

तो

क्या बेटी को भी उतना हौंसला नहीं दे सकते लोग??

 

जिस घर में बेटी को दिया गया हौंसला

उस बेटी ने

अपने घर और देश का सर गर्व से किया है ऊँचा।

 

बेटी हो या बेटा ,

उसको बचपन से

उसको हम जिस रूप में ढालेंगे

वो वैसा ही रूप धरेगा।

 

बेटियों का तो क्या है!!!!

सुंदर प्रकृति की तरह सज उठती हैं,

 

कभी लाल चुनरिया हैं लहराती

तो कभी फौजी, अफसर हैं बन जाती

 

कभी हरी हरी चूड़ियां हैं खनकती

तो कभी गोला बारूद है चलाती।

 

ये  आंगन और देश की रौनक होती हैं बेटियां।

 

वही किसी के घर की होती बेटी,

किसी के घर की होती बहु।

उसके लिए दोनों ही होते हैं अपने

दोनों घर की है लाज बचाती।

 

फिर भी न जाने क्यों कहते हैं लोग?

पराया धन होती हैं बेटियां।

 

-मानसी मित्तल, उत्तरप्रदेश

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