लेखक की कलम से

अंतिम इच्छा …

 

अपनी सास डॉ. मालती के आँखों में आँसू देखकर रुवी घबरा गई, उसने पूछा,

“मम्मी आप क्यूँ रो रही हो।”

मालती ने कहा “कुछ नहीं बहू यह दूध जल्दी से पी लो और आराम करो। प्रवीण की अंतिम इच्छा थी न कि हम गंदी बस्ती के बच्चों के लिए एक गार्डन बनायें, उसी के लिए हम ने बस्ती से लगी कुछ जमीन खरीद ली है, और बेटा तुम्हारे लिए भी उसने कुछ कहा था वह बाद में बताती हूँ।”

“जी मम्मी कहते हुए रुवी चली गई।”

तभी रमेश ने पूछा, “क्या बात है मालती तुम बहुत परेशान लग रही हो। ”

“हाँ आज जो मैने फैसला लिया वह मेरे लिए बहुत मुश्किल था।”

“क्या कह रही हो, खुल कर बात करो न।” रमेश ने कहा

“जी बता रही हूँ, आज से एक सप्ताह पहले ही तो हम कितनें खुश थे रुवी का प्रेग्नेंसी टेस्ट किया था।”

“हाँ मालती।”

टेस्ट पॉजीटिव था, है न ।”

“हाँ यह सब क्यूं बता रही हो मालती जो कहना चाहती हो वह कहो न।”

तब मालती ने कहा ” प्रवीन ने जाते- जाते कहा था कि माँ रुवी 23 साल की है उसके सामनें सारी जिंदगी पडी है, उसे हमारे बच्चे के बोझ तले मत दबाना। माँ यह मेरी अंतिम इच्छा समझ कर उसे आजाद कर देना। हमारी एक साल की शादी ने उसे जो खुशियाँ दी है उसके बदले उसकी सारी जिंदगी की खुशियाँ मत छीनना माँ। तो आज मैंने उसे दूध में मिलाकर एबाँर्शन की दवा दे दी है वैसे भी उसे कंसीव किये मात्र एक माह ही तो हुआ है। मेरे बेटे की अंतिम इच्छा थी, मैं क्या करती।”

अपने कमरे में जाते हुए रूवी के कानों में यह बातें पड़ी, उससे रहा नहीं गया और सामने आकर बोली,

ओह मम्मी! इतना बड़ा फैसला आपने अकेले कैसे ले लिया, मरने वाले की अंतिम इच्छा के लिए आप जिंदा आदमी को जीते जी कैसे मार सकते हो। माँ

रोज की तरह आपका दूध आज भी मैंने गमले में डाल दिया है और अब प्रवीण आपका ही बेटा नहीं है, वह इस दुनियाँ में मेरा बेटा बन कर आयेगा।” कहते हुए रुवी मालती के गले लग गयी ।

 

©डा. ऋचा यादव, बिलासपुर, छत्तीसगढ़                   

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