लेखक की कलम से
नारी हूँ मैं ….
पुरुष की रग रग को पल में पहचानू ईश्वर की वो कलाकारी हूँ मैं।
कुछ पल की शिथिलता से ही सारी श्रृष्टि भेद दूँ वो आरी हूँ मैं।
मुझे पालने का साहस क्या पुरुष में, कोख में ब्रम्हाण्ड है-
ईश्वर को बालक बना आँचल में खिला लूँ वो नारी हूँ मैं।
नहीं अबला नहीं चपला और न हीं इस धरा में कभी बेचारी हूँ मैं।
मुझसे उत्पन्न होती संतति, पीढ़ी नई नव जीवन की अधिकारी हूँ मैं।
है ममता समाई आँचल में मेरे जहाँ भर की मैं ममत्व पर्यायी-
मैं प्रचंड क्रोध में सब राख करती वरन प्रेम में बहुत सुखकारी हूँ मैं।
©श्रद्धान्जलि शुक्ला अंजन, कटनी, मध्य प्रदेश