लेखक की कलम से

गूंगा केरी सरकरा …

भाग – ( 2 )

एक लिक्खाड़ के लिए लिखने के सुख से बड़ा सुख कोई नहीं है ..कौन पढ़ा ..कौन नहीं पढ़ा ..फिकर नॉट ..तो सुनिए इन दिनों मेरी लेखनी और ही ज्यादा त्वरित गति से चलने लग गई और दिमाग ने कंप्यूटर को भी मात कर दिया। कबीरदास जी ने भी तो कहा है कि वह अदृश्य सुख है ..उस अनुभूत सत्य को हम शब्दों मे वर्णन नहीं कर सकते .. जैसे गूंगा व्यक्ति गुड़ का स्वाद बखान नहीं कर सकता ..कुछ ऐसी ही स्थिति हमारी हो गई..बस..कॉपी ..कलम ..मोबाइल और की बोर्ड पर थिरकती उंगलियां और विचारों का ताना बाना ..इस लॉकडाउन के दूसरे चरण में जब घर में किसी हाथ बंटाने वाले की कमी रही वहां हम दिन भर घर का काम और मौका मिलते ही लेखन ..इसके माईनस प्वाइंट भी दिखने लगे ..नींद कम हो गई और हर समय लिखने और सोचने का काम बढ़ गया …फिर भी मन को समझाया ..”कोई बात नहीं नींद ज्यादा हुई तो सपने भी ज्यादा आते हैं और सपने पूरे न हो तो बैचैनी बढ़ती है।

” वाह रे सकारात्मक विचार ..अब तो पता नहीं इतनी सकारात्मकता आ गई है लगता है कॉलेज मे विद्यार्थियों को न बोल दूं तुम बैठो मैं परीक्षा दे देती हूं। शायद यह खबर उच्चशिक्षा के दफ्तर पहुंच गई थी और वहां चिंतन का दौर चल रहा था। चिंतन का क्या परिणाम रहा वह अगले भाग में आपको पता चल जाएगा। अभी तो सबसे जरुरी बात आप सबको बताना ही भूल गई। अब मुझे डराने लगी अपनी ‘पहचान’ की चिंता क्योंकि इन दिनों आईने ने भी मुझे पहचानने से इंकार कर दिया “आईना मुझसे मेरे होने की निशानी मांगे” तो कभी पतिदेव बेचारे गाना गाते हुए दिखे ” मेरे महबूब ..मुझे पहली सी वो सूरत दे दे ” मैं सोचने लगी ये दुनिया न … नारियों के लिए बहुत बेदर्द है ..जब हम मेकअप करें तो ऐसे ऐसे चुटकुले सुनाएंगे कि क्या बताएं ..और जब मेकअप न करें तो कहते हैं कि पहली सी सूरत दे दे ?? हमने भी खिसियाकर कह ही दिया ..कहां से दें दें ब्यूटी पार्लर बंद हैं ,सब क्रीम साबुन खत्म हो गए हैं और तुम्हें बताते हैं तो फिर तुम बाहर निकलोगे।

बेहतरी इसी में है कि घर में रहो। पतिदेव इस समय गुस्सा नहीं करते। जो बोलो उसमें हां में हां मिलाते हैं। हम सब .. कारण समझ रहे थे क्योंकि अभी तो लडाई हुई तो न बाहर खाना मिलेगा और बाहर निकले तो पुलिसिया डंडों का कहर भी बरसेगा। इन बातों को वो समझ रहे थे।

हम दोनों के बालों में चांदी चमकने लगी थी ..बाल बेतरतीब बढ गए थे पर हम दोनों परशुराम और अहिल्या बनकर खुश थे। नैचुरल ब्यूटी के साथ नेचर के करीब घर के अंदर से बगीचे तक की दूरी तय हो रही थी। कोरोना का कहर बरस रहा था। इंसान एक ‘केस’ ..एक ‘संख्या ‘ बन गया था ..अब एक अज्ञात भय मनोमस्तिष्क तक फैल रहा था। ऐसे में घर में बैठकर अपनों का हाल चाल जानना और टी.वी. में साथ बैठकर धार्मिक सीरियल देखना। यही दिनचर्या बन गई थी। पर यकीन मानिये इस बीच अपनों से प्यार ..अपनी संस्कृति से जुड़ने का वही पुराना सुख महसूस कर रही थी। मैं टीवी हमेशा लेटकर देखती हूं अब तो टीवी के तरफ पैर रखने में भी संकोच होने लगा है … इस बीच खबर आ रही है कि लॉकडाउन फिर से बढ़ेगा ….

 

   ©डॉ. सुनीता मिश्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़                                                        

 क्रमशः

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