लेखक की कलम से
कुछ दोहे. . .
कविता
क्या देकर हम जा रहे, क्या है उनके पास
क्या सोगाते दे चले, जो हैं अपने खास
दिया प्रदूषण और दी, बीमारी सोगात
दिया धुआं इतना अधिक, लगती थमने सांस
खानपान दूषित हुआ, खत्म नीर के सोत्र
खा गया नदियां सभी खाये झरने विकास
हाय प्रदूषण बढ़ रहा, मत काटो तुम वृक्ष
बिठा परिन्दे ड़ाल पर, दे करने परिहास
खूब निकल कर घुल रही, ये सीओटू गैस
सूरज ले हम आ गये, तेरे जलने पास . . .