कर्मों का प्रतिकार है …
जीवन कुछ नहीं, सिर्फ कर्मों का प्रतिकार है!
जो करोगे औरों के संग, वापसी स्वीकार है!!
यदि तुम लेते हाल सरोकार, जग लेता हाल फिलहाल है!
यदि तुम मौन रहे जग से, तो शून्य निज मन-द्वार है!!
यदि लुटाते स्नेह-सुधा तो, सिक्त होता निज मन-संसार है!
यदि भेंट प्रेम का भेजो, सुख पाता निज हृदय-द्वार है!!
जीवन कुछ और नहीं, सिर्फ कर्मों का प्रतिकार है!
जो करोगे औरों के संग, वापसी स्वीकार है!!
मधुर वचन मुख से बोलो, निज होता मन हरिद्वार है!
कोयल को आदर्श बना लो, पूजता जग-संसार है!!
काग कहीं ठौर न पाए, सिर्फ कर्कश का परिणाम है!
फूल नेहा का भर दो जग में, कांटो का क्या काम है?
दया, करुणा, ममता है जग में, कटुता का क्या काम है?
जीवन कुछ और नहीं, सिर्फ कर्मों का प्रतिकार है!
जो करोगे औरों के संग, वापसी स्वीकार है!!
गड्ढा खोदोगे गर जग में, गिरना एक दिन साच है!
परोपकार को जीवन मानो, भला करो मानव का प्यार से!!
मानवता ही पूँजी जग की, जड़ता का क्या काम है?
जाति-धर्म की हेराफेरी में न जकड़ो, परमार्थ ही प्राण है!
बहुरंगी दुनिया में सिर्फ, प्रेम रंग वितरित कर डालो!!
“स्व” के जंगयुक्त बंधन का, अतिक्रमण कर डालो!
“पर” प्रस्थान करो जग में, जीवन का यही सार है!!
स्नेह जीवन का मूल मंत्र, इसको अंगीकार करो!
जीवन कुछ और नहीं, कर्मों का प्रतिकार है!
जो करोगे औरों के संग, वापसी स्वीकार है!!
प्रेम धरा में पवन सह बहे, उस संग बहना अनिवार्य है!
चंदन सी शीतलता ग्रह कर, सुरभित संसार है!!
बाधाओं के काले बादल, प्रकृति का यही सार है!
धीरज जरा धारण बस करना, क्षण में छटता हर कटु वार है!!
नाम प्रभु का हृय में धरकर, कर्म-धर्म स्वीकार है!
जीवन कुछ और नहीं, सिर्फ कर्मों का प्रतिकार है!
जो करोगे औरों संग वापसी स्वीकार है!!
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता