अजन्मी की पुकार …
माँ तू ही नहीं मेरी रक्षक तो और कौन होगा
तेरी कोख सुरक्षित नहीं तो कौन सा स्थान होगा
माँ तेरे आँचल से ज्यादा सुरक्षित और क्या होगा
गोद में आने का मेरा मन करता क्या तूने सोचा?
माँ तेरे साथ साथ रहने को हर पल दिल करता
तू ही है यदि साथ हो मेरे तो मन खुश रहता
तेरे दामन में ही अपने को सुरक्षित पाया होता
माँ अगर तू भी दुश्मनों का साथ न दे रही होती।
माँ, तू भी दुश्मन बन बैठी अपनी अजन्मी की
मेरी सांसों को, क्यों खामोश कर तू बैठी?
माँ मेरा कसूर क्या था बस जन्म तो दी होती
मुझे मौत नहीं जीवन देती, दुनिया में आने तो देती।
माँ तू भी तो बेटी थी नानी की फिर क्या हक तुझे
मेरे प्राणों को यूँ हर लेने का, रूह कांपती हैं मेरी
न जाने क्यों एक बेटी ही बेटी की दुश्मन बन बैठी
माँ तू ही नहीं मेरी, तो कौन मेरा अपना यहां।
क्यों विरोध नहीं किया तूने एक बार भी किसी का
क्यों जन्म से पहले ही मौत की नींद सुलाया मुझे
माँ क्या मेरा कसूर बताओगी आज मुझे
क्यों मारा कोख में ही समझा पाओगी मुझे।
क्या समझ पाओगी मुझे..???
©डॉ मंजु सैनी, गाज़ियाबाद